बिहार में क्या पलट जाएगी नीतीश सरकार : जब-जब बिहार में हुई है 5% से ज्यादा बढ़ी वोटिंग, हुआ है बड़ा खेला , राज्य क्या फिर से दोहराएगा इतिहास डेस्क। बिहार में पहले चरण की 121 सीटों पर 64.46% वोटिंग. . .

बिहार में क्या पलट जाएगी नीतीश सरकार : जब-जब बिहार में हुई है 5% से ज्यादा बढ़ी वोटिंग, हुआ है बड़ा खेला , राज्य क्या फिर से दोहराएगा इतिहास

डेस्क। बिहार में पहले चरण की 121 सीटों पर 64.46% वोटिंग हुई है। इन 121 सीटों पर उतरे 1314 उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में कैद हो गई है। गुरुवार को पहले चरण में मतदाताओं का उत्साह ज़बरदस्त देखने को मिला। पहले फेज की 121 सीटों पर 64.69 फीसदी लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया, जो पिछले चुनाव से करीब साढ़े आठ फीसदी मतदान ज्यादा हुआ है। अगर दूसरे और आखिरी फेज की 122 सीटों पर भी इसी तरह वोटिंग हुई, तो यह बिहार की राजनीति को पूरी तरह बदल सकती है। कम से कम आंकड़े तो यही बता रहे हैं।

इस बार के मतदान को अभूतपूर्व माना जा रहा

बिहार की सियासत में इस बार के मतदान को अभूतपूर्व माना जा रहा है, क्योंकि प्रदेश के इतिहास में यह सर्वाधिक वोटिंग है. साल 2020 में पहले चरण में 56.1 फीसदी वोटिंग हुई, लेकिन उस समय पहले फेज में 71 सीटों पर चुनाव हुए थे जबकि इस बार 121 सीट पर चुनाव हुए हैं। चुनाव आयोग के मुताबिक पहले फेज की 121 सीटों पर 64.69 फीसदी मतदान रहा जबकि 2020 के विधानसभा चुनाव में इन सीटों पर 56 फीसदी के करीब मतदान रहा। इस लिहाज़ से देखें तो वोटिंग पैटर्न कहता है कि पिछले चुनाव से करीब साढ़े आठ फ़ीसदी वोटिंग ज़्यादा हुई है। इस बार चुनाव में जिस तरह से मतदान बढ़ा है, उससे सियासी दलों की धड़कनें बढ़ गई हैं।

इतिहास में पहली बार पार हुआ 64% आंकड़ा

राज्य के चुनावी इतिहास में यह अब तक का सर्वाधिक मतदान है। साल 2020 के पहले चरण में 56.1% वोटिंग हुई थी, जबकि इस बार यह 64.69% तक पहुंच गई। यह आंकड़ा न केवल विधानसभा बल्कि लोकसभा चुनाव 1998 (64.60%) से भी अधिक है।

किन जिलों में सबसे ज़्यादा और कम वोटिंग हुई?

पहले चरण में मुज़फ़्फरपुर (70.96%) और समस्तीपुर (70.63%) जिले में सबसे ज़्यादा मतदान हुआ।
वहीं पटना (57.93%) में सबसे कम वोट पड़े।
अन्य प्रमुख जिलों में मतदान प्रतिशत इस प्रकार रहा —
वैशाली: 67.37%
मधेपुरा: 67.21%
सहरसा: 66.84%
खगड़िया: 66.36%
लखीसराय: 65.05%
नालंदा: 58.91%
सीवान: 60.31%
मुंगेर: 60.40%

3.75 करोड़ मतदाता — 2020 के मुकाबले 5 लाख अधिक

इस बार पहले चरण में कुल 3.75 करोड़ मतदाता थे, जबकि 2020 में 3.70 करोड़। पिछली बार 2.06 करोड़ लोगों ने वोट डाला था, लेकिन इस बार मतदान प्रतिशत में 8.5% की बढ़ोतरी ने सबका ध्यान खींचा है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इतनी बड़ी बढ़त सत्ता परिवर्तन का संकेत भी दे सकती है।

क्या ज्यादा वोटिंग से बदलेगी सत्ता? इतिहास कहता है “हां”

बिहार के चुनावी इतिहास में जब-जब मतदान बढ़ा, सत्ता बदली है, 1967 में 7% वोटिंग बढ़ी और कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई। 1980 में 6.8% की वृद्धि हुई, कांग्रेस की वापसी हुई। 1990 में 5.8% बढ़ी, जनता दल सत्ता में आई। 2020 में मामूली वृद्धि के बावजूद नीतीश कुमार की वापसी हुई। इस बार 8.5% की बढ़ोतरी को लेकर सियासी हलकों में बेचैनी है।

पहले चरण में किन इलाकों में हुई वोटिंग?

मिथिलांचल, कोसी, मुंगेर, सारण और भोजपुर बेल्ट की 121 सीटों पर मतदान हुआ।
अब शेष 122 सीटों पर मतदान 11 नवंबर को होगा। इन 121 सीटों में पिछली बार महागठबंधन को 61 और एनडीए को 59 सीटें मिली थीं। पिछला प्रदर्शन: RJD और BJP में कांटे की टक्कर

2020 के पहले चरण की 121 सीटों में परिणाम इस प्रकार रहे:

आरजेडी: 42 सीट
बीजेपी: 32 सीट
जेडीयू: 23 सीट
कांग्रेस: 8 सीट
माले: 7 सीट
वीआईपी: 4 सीट
सीपीआई/सीपीएम: 2-2 सीट
एलजेपी: 1 सीट

बिहार का वोटिंग पैटर्न के क्या संकेत


वोटिंग फीसदी के घटने-बढ़ने का सीधा-सीधा असर चुनाव के नतीजों पर भी पड़ता है। भारत के चुनावी इतिहास में आमतौर पर माना जाता है कि जब वोटिंग ज़्यादा होती है, तो जनता बदलाव (एंटी इंकम्बेंसी) चाहती है। लेकिन ऐसा हर बार नहीं होता। चुनाव में देखा गया है कि कई बार अधिक मतदान का मतलब सरकार के प्रति समर्थन (प्रो इंकम्बेंसी) भी रहती है। मतलब साफ है कि वोटर्स की ये सक्रियता किस दिशा में जाएगी, यह कहना अभी जल्दबाजी होगी। एसआईआर के बाद पहली बार चुनाव हुए है। एसआईआर में तमाम वोट काटे गए हैं तो कुछ नए वोट जोड़े गए हैं। इस तरह फर्जी वोटर हटाए जाने की वजह से भी वोटिंग बढ़ने का कारण माना जा रहा है, लेकिन बिहार में जब-जब वोटिंग बढ़ी है तो सत्ता बदल जाती है।

कब -कब बिहार में बदली सरकार

बिहार में विधानसभा चुनाव की बात की जाए तो 1951-52 से 2020 तक केवल तीन बार ही 60 फीसदी से अधिक वोटिंग हुई। 1990 में 62.04, 1995 में 61.79 और अब से पहले सबसे अधिक रिकॉर्ड 2020 में 62.57 वोट पड़े थे, लेकिन इस बार सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। अभी पहले चरण में 64.69 फ़ीसदी वोटिंग रही है. ऐसे ही अगले चरण में वोटिंग हुई तो बिहार के इतिहास में यह अपने आप में एक रिकॉर्ड होगा। बिहार में अभी तक सबसे कम 42.60 फ़ीसदी भी 1951-52 में ही वोट पड़े थे। आजादी के बाद से लेकर अभी तक बिहार में जितने चुनाव हुए हैं, उसके वोटिंग पैटर्न को देखते हैं तो साफ जाहिर होता है कि बिहार में जब-जब मतदान में 5 फीसदी से ज़्यादा इजाफा हुआ है, उसका असर चुनाव पर पड़ा है. बिहार में सरकार बदल गई है, तीन बार देखा गया है कि वोटिंग बढ़ने से कैसे सत्ता पर सियासी असर पड़ा है।

पार्टियों की बढ़ी टेंशन


बिहार के पहले चरण में मिथिलांचल, कोसी, मुंगेर डिवीजन, सारण, भोजपुर बेल्ट की 121 सीटों पर चुनाव हुए हैं। बिहार में इस बार दो चरण में चुनाव हो रहा है। पहले चरण की 121 सीटों पर 1314 उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में कैद हो गई जबकि बाकी 122 सीटों पर 11 नवंबर को मतदान है। पहले चरण में जिस तरह से मतदान में इज़ाफ़ा हुआ है, उसे पिछले वोटिंग पैटर्न के लिहाज़ से देखें तो नीतीश कुमार की अगुवाई वाली सरकार के लिए सियासी टेंशन बढ़ा सकती हैं। बिहार में पिछले चार चुनाव के वोटिंग पैटर्न को देखें तो 2010 के चुनाव में टर्नआउट 52.1 फीसदी था जो 2015 में 55.9 फ़ीसदी और 2020 में बढ़कर 56.1 फ़ीसदी पर पहुंच गया था, इस बार पहले चरण का वोटिंग पैटर्न देखें तो 64.69 फ़ीसदी मतदान है। पिछले तीन चुनाव में वोटिंग बढ़ने का लाभ देखें तो नीतीश कुमार को मिला है, लेकिन उसमें इज़ाफा दो से तीन फासदी का था. इस बार साढ़े 8 फीसदी का अंतर है।

बिहार में इस बार समीकरण बदल गए हैं

हालांकि, इस बार समीकरण बदल गए हैं, 2020 में एनडीए से अलग चुनाव लड़ने वाले चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा इस बार एनडीए के साथ थे तो मुकेश सहनी इस बार महागठबंधन के साथ हैं। इस बार 104 सीटों पर सीधा मुकाबला है, जबकि 17 सीटों पर त्रिकोणीय लड़ाई दिख रही है। पहले चरण में आरजेडी 72 सीट पर है तो उसके सहयोगी कांग्रेस 24 और सीपीआई माले 14 सीट पर किस्मत आजामा रहे हैं। वीआईपी और सीपीआई छह-छह सीट पर चुनाव लड़ रही हैं, जबकि सीपीएम तीन और आईपी गुप्ता की इंडियन इंक्लूसिव पार्टी (आईआईपी) ने दो सीटों पर अपने उम्मीदवार मैदान में थे। इस तरह छह सीटों पर महागठबंधन की फ्रेंडली फाइट है. वहीं, एनडीए की तरफ से जेडीयू पहले फेज़ में 57 सीट मैदान में है तो बीजेपी ने 48 सीट पर थी। चिराग पासवान की एलजेपी (रामविलास) ने 13 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं. उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएम के दो प्रत्याशी मैदान में हैं और जीतनराम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) भी एक सीट पर चुनाव लड़ रही है।

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