भारत की कोकिला लता मंगेशकर आज 91 साल की हो गई हैं। उनका जन्म 28 सितंबर 1929 को मध्यप्रदेश के इंदौर में हुआ था। इंदौर में जन्मीं लता मंगेशकर के पिता का नाम दीनानाथ मंगेशकर था। लता को सिंगिग की कला अपने पिता से ही विरासत में मिली थी।
लता मंगेशकर ने अपनी गायकी से देश के साथ-साथ दुनिया में भी लोगों का दिल जीता है। एक समय लता की जिंदगी में ऐसा भी था जब उनकी पतली आवाज की वजह से उन्हें रिजेक्ट कर दिया गया था। लेकिन लता जी ने इसे अपनी ताकत बनाई और अपने सुरों का जादू बिखेरकर वो भारत की स्वर कोकिला साबित हुईं। गायिकी की क्षेत्र में लता जी के अमूल्य और अविश्वसनीय योगदान के लिए उन्हें भारत रत्न, पद्म भूषण और दादासाहेब फाल्के अवार्ड जैसे कई सम्मानों से नवाजा जा चुका है।
मास्टर गुलाम हैदर ने लता को फिल्म ‘मजबूर’ के गीत ‘अंग्रेजी छोरा चला गया’ में गायक मुकेश के साथ गाने का मौका दिया। यह लता का पहला बड़ा ब्रेक था, इसके बाद उन्हें काम की कभी कमी नहीं हुई। इसके बाद लता जी की पतली आवाज के लिए उन्हें रिजक्ट करने वाले निर्माता शशधर मुखर्जी ने भी अपनी गलती मानी और ‘अनारकली’, ‘जिद्दी’ जैसी फिल्मों में लता जी को गाने का मौका दिया जो काफी हिट रहे।
साल 1977 में फिल्म ‘किनारा’ में खुद लता मंगेशकर के लिए एक गाना लिखा गया। आज जब भी लता का नाम आता है उस गाने का जिक्र जरुर होता है- ‘मेरी आवाज ही पहचान है’ टाइटल का ये गाना लता के लिए गुलजार ने लिखा। इसके साथ ही लता जी की गायिकी से खुश होकर गुलजार मानते हैं,’लता की आवाज हमारे देश का एक सांस्कृतिक तथ्य है, जो हम पर हर दिन उजागर होता है। उनकी मधुर आवाज सुने बगैर शाम नहीं ढलती- सिवा की आप बाधिर ना हों।’
इसके साथ ही स्वर कोकिला को जहर देने की भी कोशिश की जा चुकी है। 1962 में जब लता 32 साल की थी तब उन्हें स्लो प्वॉइजन दिया गया था। लता की बेहद करीबी पदमा सचदेव ने इसका जिक्र अपनी किताब ‘ऐसा कहां से लाऊं’में किया है। जिसके बाद राइटर मजरूह सुल्तानपुरी कई दिनों तक उनके घर आकर पहले खुद खाना चखते, फिर लता को खाने देते थे। हालांकि लता जी को मारने का ये कदम किसने उठाया था इसका पता आज तक नहीं चल पाया है।
लता जी 91 साल की हो गई हैं और आज भी वो सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं। लता हर सामाजिक मुद्दे और दिग्गजों के जन्मदिन पर उन्हें अपने ट्विटर अकाउंट के जरिए ट्वीट कर अपनी भावनाएं व्यक्त करती हैं।