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क्या है करोड़ों जान बचाने वाली वो तकनीक जिसके लिए दो वैज्ञानिकों को अब मिला नोबेल पुरस्कार?

नई दिल्ली। नोबेल पुरस्कार की घोषणा हो गई है. इस साल पहला नोबेल पुरस्कार मेडिसिन के लिए कैटालिन कारिको और ड्रू वीसमैन को दिया गया. इसके साथ ही इनकी उपलब्धि पर चर्चा शुरू हो गई है. नोबेल की ऑफिशियल वेबसाइट. . .

नई दिल्ली। नोबेल पुरस्कार की घोषणा हो गई है. इस साल पहला नोबेल पुरस्कार मेडिसिन के लिए कैटालिन कारिको और ड्रू वीसमैन को दिया गया. इसके साथ ही इनकी उपलब्धि पर चर्चा शुरू हो गई है. नोबेल की ऑफिशियल वेबसाइट के मुताबिक, इनकी उपलब्धि के कारण कोविड के खिलाफ m-RNA वैक्सीन बनाना आसान हुआ. जिसकी शुरुआत 2020 में हुई थी.
ऐसे में सवाल है कि इनकी किस उपलब्धि के कारण कोविड की वैक्सीन बनने का रास्ता आसान हुआ, कोरोना को रोकने में मदद मिली और कैसा रहा इनका अब तक का सफर.
क्या होती है m-RNA वैक्सीन, पहले इसे समझें
आमतौर पर वैक्सीन वायरस के डेड या कमजोर हिस्से पर निर्भर होती है, जिसे इंसान के शरीर में पहुंचाया जाता है. ताकि खतरा घटाया जा सके. समय के साथ वैक्सीन बनाने के तरीके में बदलाव हुआ और अब सिर्फ वायरस के जेनेटिक मैटेरियल (m-RNA) का इस्तेमाल वैक्सीन बनाने में किया जाने लगा. हालांकि, वैक्सीन को इस तरह बनाने में समय भी लगता है.
mRNA को मैसेंजर आरएनए भी कहते हैं. यह जेनेटिक कोड का छोटा सा हिस्सा होता है, जो शरीर में प्रोटीन के निर्माण के लिए जरूरी होता है. जब भी कोई वायरस शरीर पर हमला करता है तो इसी m-RNA वैक्सीन के कारण शरीर में ऐसा प्रोटीन (एंटीबॉडी) बनता है जो रोगों से लड़ने वाले इम्यून सिस्टम के लिए जरूरी होता है. इससे शरीर में वायरस से लड़ने वाली एंटीबॉडीज बनती हैं. यही वजह है कि अब दुनिया में ऐसी वैक्सीन ज्यादा तैयार की जा रही हैं.
नोबेल विजेताओं ने क्या कारनामा कर दिखाया, यह भी जान लीजिए
17 अक्टूबर 1955 को हंगरी में जन्मीं कैटलिन कारिको ने m-RNA तकनीक पर काम किया. यूं तो एम-आरएनए की खोज 1961 में हुई थी, लेकिन उस दौर में वैज्ञानिकों के बीच इस बात की होड़ मची थी कि इससे शरीर में प्रोटीन (एंटीबॉडी) कैसे बनता है. कारिको भी यही जानने की कोशिश में जुटी थीं. इसकी मदद से वो पुरानी बीमारियों की वैक्सीन तैयार करना चाहती थीं. 1990 में कारिको पेन्सिल्वेनिया यूनिवर्सिटी में काम कर रही थीं, लेकिन फंड की कमी के कारण रिसर्च को रफ्तार नहीं मिल पा रही थी.
1997 में ड्रू वीसमैन पेन्सिल्वेनिया यूनिवर्सिटी में आए और कारिको के प्रोजेक्ट के लिए फंडिंग की. पेशे से इम्यूनोलॉजिस्ट वीसमैन ने कारिको के साथ मिलकर एम-आरएनए तकनीक पर काम करना शुरू किया. 2005 में मिलकर दोनों के प्रोजेक्ट पर एक रिसर्च पेपर पब्लिश हुआ. दोनों ने रिसर्च पेपर में बताया कि कैसे m-RNA तकनीक की मदद से इंसान में वायरस के खिलाफ लड़ने की क्षमता को बढ़ाया जा सकता है. इसके साथ यह भी समझाया कि कैसे इस तकनीक की मदद से दवा और वैक्सीन तैयार की जा सकती है.
सालों तक इनकी खोज पर ध्यान नहीं दिया गया
इनकी इतनी बड़ी खोज के बाद भी सालों तक इस पर ध्यान नहीं दिया गया, लेकिन साल 2010 टर्निंग पॉइंट साबित हुआ. अमेरिका वैज्ञानिक डैरिक रोसी ने m-RNA वैक्सीन बनाने के लिए मॉडर्ना नाम की कंपनी खोली. 2013 में कारिका को जर्मनी की बायोएनटेक में सीनियर वाइज प्रेजिडेंट बनाया गया. m-RNA तकनीक के लिए डैरिक ने कारिको और वीसमैन को नोबेल प्राइज देने की लगातार मांग की.
कोरोनाकाल में इनकी तकनीक का इस्तेमाल किया गया और कई कंपनियों ने m-RNA तकनीक पर आधारित कोविड वैक्सीन बनाई. अब जाकर इन्हें नोबेल पुरस्कार मिला है.