नई दिल्ली : कोरोना वायरस के नए वैरिएंट सामने आने के बाद बूस्टर डोज की मांग ने जोर पकड़ी है कोरोना वैक्सीन का निर्माण करने वाली कई कंपनियां अपना बूस्टर डोज लाने की तैयारी में हैं। डेल्टा वायरस को जिम्मेदार मानते हुए भारत में कोरोना की दूसरी लहर भी इसी से फैली। हाल के दिनों में कोरोना ने अपना रूप बदल लिया है। भारत सहित दुनिया भर में इसके डेल्टा पल्स, लैम्बडा और कप्पा वैरिएंट सामने आए हैं। वायरस के नए स्वरूप आने के बाद कोरोना का टीका बनाने वाली कंपनियां अब ये देखने लगी हैं कि इन नए वैरिएंट्स पर उनके टीके कितने कारगर हैं।
टीका का निर्माण करने वाले कुछ कंपनियों का मानना है कि उनकी वैक्सीन कोरोना के सभी प्रकारों या वैरिएंट्स पर असरदार है जबकि कुछ कंपनियों ने पाया है कि समय के साथ उनका टीके का असर कम हुआ है। ऐसे में टीका निर्माता कंपनियां बूस्टर डोज का विकल्प पेश कर रही हैं।अरब अमीरात, थाइलैंड और बहरीन जैसे देश जिन्होंने अपने यहां लोगों को ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका का डोज लगाया है, इन देशों ने भी टीके का बूस्टर डोज लगाने का फैसला किया है।
क्या होता है बूस्टर डोज?
किसी खास रोगाणु अथवा विषाणु के खिलाफ लड़ने में बूस्टर डोज शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता और मजबूत करता है। यह बूस्टर डोज उसी वैक्सीन की हो सकती है जिसे व्यक्ति ने पहले लिया है। बूस्टर डोज शरीर में और ज्यादा एंटीबॉडीज का निर्माण करते हुए प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करता है। बूस्टर डोज शरीर की प्रतिरधक क्षमता को यह याद दिलाता है उसे किसी खास विषाणु से लड़ने के लिए तैयार रहना है। बूस्टर डोज उन्हीं लोगों को दिया जा सकता है जिन्होंने अपने टीके की पूरी खुराक ली हो। क्योंकि दुनिया भर में कोविड-19 के नए वैरिएंट सामने आ रहे हैं ऐसे में स्वास्थ्य संस्थाएं बूस्टर डोज देने से पहले कई चीजों के बारे में सोचेंगी। सबसे पहले बूस्टर डोज बुजुर्ग लोगों को देने के बारे में सोचा जा सकता है। या इसे ऐसे लोगों को पहले दिया जा सकता है जिनका शरीर ज्यादा मात्रा में एंटीबॉडीज नहीं पैदा कर सकती है। या जब यह भी लगे कि किसी खास वैक्सीन की ओर से पैदा की गई एंटीबॉडी को नया वैरिएंट मात दे रहा है तो ऐसे समय में बूस्टर डोज की जरूरत पड़ सकती है।