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चुनावी रण में ‘पावर स्टार ‘: आरजेडी की बजाय बीजेपी क्यों बने पवन सिंह की पहली पसंद ? जानिए पूरा गणित

पटना/आरा। भोजपुरी सिनेमा के सुपरस्टार और चर्चित निर्दलीय उम्मीदवार पवन सिंह ने आखिरकार भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का दामन थाम लिया है। 16 महीने पहले पार्टी से दूरी बना चुके पवन ने अब फिर से भाजपा में वापसी कर बिहार. . .

पटना/आरा। भोजपुरी सिनेमा के सुपरस्टार और चर्चित निर्दलीय उम्मीदवार पवन सिंह ने आखिरकार भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का दामन थाम लिया है। 16 महीने पहले पार्टी से दूरी बना चुके पवन ने अब फिर से भाजपा में वापसी कर बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है। सवाल उठता है कि आरजेडी की तारीफें करने वाले पवन सिंह ने आखिर आखिरी वक्त में बीजेपी को क्यों चुना?
पवन सिंह का राजनीति में सक्रिय होना नया नहीं है, लेकिन उनका राजनीतिक रुख लगातार बदलता रहा है। कुछ महीने पहले उन्होंने तेजस्वी यादव को “बड़ा भाई” कहकर सम्मान दिया था, यहां तक कि आरजेडी में शामिल होने की अटकलें भी तेज हो गई थीं। वहीं, प्रशांत किशोर की पार्टी से भी उनके चुनाव लड़ने की चर्चा थी। ऐसे में उनका बीजेपी की ओर लौटना अचानक सा जरूर लगता है, लेकिन इसके पीछे रणनीतिक सोच और सामाजिक समीकरण छुपे हैं।

बीजेपी को क्यों चुना पवन सिंह ने?

पवन सिंह ने लोकसभा चुनाव बतौर निर्दलीय लड़ा था और उपेंद्र कुशवाहा जैसे वरिष्ठ नेता को पछाड़ते हुए तीसरे स्थान पर पहुंच गए थे। इस प्रदर्शन से यह साफ हो गया कि पवन सिंह के पास जनाधार है, खासकर भोजपुरी पट्टी में। बावजूद इसके, उन्हें अपनी राजनीतिक जमीन को पुख्ता करने के लिए एक मजबूत संगठन की जरूरत थी, वे है यादव मतदाता] जिनके संख्या लगभग 28,000 है

कोइरी, ब्राह्मण और दलित मतदाता: उल्लेखनीय संख्या में

पवन सिंह खुद राजपूत समुदाय से आते हैं, ऐसे में उनका कोर वोट बेस पहले से ही तय माना जा रहा है। वहीं, बीजेपी का ब्राह्मण और दलित समुदाय में पकड़, और एनडीए के दलों लोजपा (रामविलास), हम पार्टी के साथ होने से उन्हें एक मजबूत सामाजिक समर्थन मिल सकता है।

आरजेडी से दूरी क्यों?

तेजस्वी यादव की तारीफ करने वाले पवन सिंह अब उन्हें “जातिवादी” कह रहे हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि पवन सिंह की आरजेडी में एंट्री को लेकर अंदरूनी असहमति और संभावित टिकट की अनिश्चितता उनके बीजेपी रुख के पीछे एक कारण हो सकती है। बीजेपी ने उन्हें न सिर्फ मंच दिया बल्कि समर्थन भी, जिससे उनके लिए यह विकल्प ज़्यादा व्यावहारिक और प्रभावी बन गया।

बीजेपी में लौटना सोची-समझी राजनीतिक

पवन सिंह का बीजेपी में लौटना सिर्फ पार्टी में वापसी नहीं, बल्कि एक सोची-समझी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है। आरा जैसे रणनीतिक क्षेत्र में जातीय संतुलन, संगठनात्मक समर्थन और स्टारडम का मेल उनके लिए चुनावी बाज़ी जीतने का मजबूत आधार तैयार कर सकता है। अब देखना यह होगा कि क्या यह रणनीति उन्हें सिर्फ चर्चा में रखेगी या विधानसभा में भी पहुंचाएगी।