जलपाईगुड़ी। मोर एक ऐसा पक्षी है जिसकी सुंदरता देखते ही बनती है, आगे यह कहा जाये की मोर पृथ्वी पर सबसे सुंदर पक्षियों में से एक है, तो गलत नहीं हो। नील पंखों से बिखरती अलौकिक सौंदर्य की छटा निहारने को हर कोई ठहर जा रहा है। यह अपने रंगीन पंखों के लिए विशेष रूप से जाना जाता है जो देखने के लिए एक दृश्य हैं। यह सबसे अच्छा लगता है जब यह बारिश में जमकर नाचता है।
सबसे बड़ी ख़ुशी की बात है कि जलपाईगुड़ी शहर से सटे डेंगूझार चाय बागान में मोरों का झुंड लोगों और पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बने हुए है। आपको बता दें कि कई मोर दो तीन साल पहले यहां आए और यहीं के होकर रह गए। तब से इस बागान में मोरों का झुंड बना हुआ है। वे यहां के आदिवासियों के निकट जाने में नहीं डरते, क्योंकि वे समझ चुके है कि वे उनके भक्षक नहीं, बल्कि रक्षक है। इस बागान के मजदूरों को हर रोज जागने के बाद मोर के झुंड दिखाई देता हैं। इतने मोर को एक साथ देखने के लिए दूर-दूर से कई पर्यटक डेंगुझार आते हैं। साथ ही यह सुंदर कंचनजंगा पहाड़ी एक अतिरिक्त बोनस है। कुल मिलाकर इस चाय बागान में एक खुशनुमा माहौल बना है।
गौरतलब है कि शिकारियों से भयभीत जंगल छोड़कर मोहल्ले में चले गए मोरों के समूह को बचाने के लिए क्षेत्र के कार्यकर्ता हमेशा सक्रिय रहते हैं। बागान प्रबंधक जीवन चंद्र पांडे ने कहा कि विशेष रूप से उनके बगीचों में जैविक खाद और जैविक कीटनाशकों के प्रयोग से पशुओं को नुकसान होने की कोई संभावना नहीं है। रुकरुका नदी डेंगूझार चाय बागान से होकर बहती है। इस नदी में जानवर पानी पीने जाते हैं। इसी तरह बगीचे से होकर गुजरने वाली एक रेलवे लाइन है। 1,000 हेक्टेयर से अधिक के इस चाय बागान में करीब 10,000 लोग रहते हैं। इस गार्डन में सभी को मोर बेहद पसंद हैं। इन खूबसूरत पक्षियों को सभी ने भगवान के वाहन के रूप में अपनाया है। मानसून के बाद बगीचे की सुंदरता बहुत बढ़ जाती है। यहां दूर-दूर से कई लोग मोरों के झुंड को देखने आते हैं। इसके अलावा, हर रविवार और छुट्टियों में जलपाईगुड़ी शहर के कई लोग डेंगुअझार चाय बागान में छुट्टियां बिताने आते हैं।
साफ है कि राष्ट्रीय पक्षी मोर को तराई का यह इलाका खूब भा रहा है। इनका बसेरा नदियों की तलहटी वाले क्षेत्र है। यह इलाका इनके लिए सबसे मुफीद माना जा रहा है। रष्ट्रीय पक्षी के स्वभाव के मुताबिक यहां सैर के लिए जल, जंगल और जमीन तीनों उपलब्ध हैं। यह आमजन के लिए मनभावन तो हैं ही, वन विभाग इन्हें अपनी धरोहर भी मान रहा है।