नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को तलाक-ए-हसन को रद को लेकर नाराजगी जताई है। कोर्ट ने पूछा कि क्या आधुनिक सभ्य समाज में महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाली इस प्रथा को बने रहने देना चाहिए? कोर्ट के अनुसार, तीन तलाक के बाद अब तलाक-ए-हसन को रद करने पर विचार किया जा सकता है।
दरअसल, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुयान और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने संकेत दिया कि वह इस प्रथा को असंवैधानिक घोषित करने पर गंभीरता से विचार कर सकती है और मामले को पांच जजों की संवैधानिक पीठ को भेजने पर भी विचार कर रही है।
सुप्रीम कोर्ट ने दिया रद करने का संकेत
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को संकेत दिया कि वह तलाक-ए-हसन को रद करने पर विचार कर सकता है, यह एक ऐसी प्रथा है। जिसके तहत एक मुस्लिम पुरुष तीन महीने तक हर महीने में एक बार “तलाक” शब्द कहकर अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति उज्जल भुयान और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने यह भी संकेत दिया कि वह इस मामले को पांच न्यायाधीशों की पीठ को भेज सकती है। इसके लिए पीठ ने संबंधित पक्षों से विचार के लिए उठने वाले व्यापक प्रश्नों के साथ नोट प्रस्तुत करने को कहा।
न्यायालय ने कहा कि एक बार जब आप हमें संक्षिप्त नोट दे देंगे तो हम मामले को 5 न्यायाधीशों की पीठ को सौंपने की वांछनीयता पर विचार करेंगे। हमें मोटे तौर पर वे प्रश्न बताइए जो उठ सकते हैं। फिर हम देखेंगे कि वे मुख्यतः कानूनी प्रकृति के हैं और न्यायालय को उनका समाधान करना चाहिए।
भेदभावपूर्ण व्यवहार हो रहा…
न्यायालय ने कहा कि चूंकि यह प्रथा बड़े पैमाने पर समाज को प्रभावित करती है, इसलिए न्यायालय को सुधारात्मक उपाय करने के लिए कदम उठाना पड़ सकता है। इसमें पूरा समाज शामिल है। कुछ सुधारात्मक उपाय किए जाने चाहिए। यदि घोर भेदभावपूर्ण व्यवहार हो रहा है, तो न्यायालय को हस्तक्षेप करना होगा।
क्या इसे भी खत्म कर देना चाहिए?
न्यायाधीश ने पूछा कि ऐसी प्रथा, जो महिलाओं की गरिमा को प्रभावित करती है, को सभ्य समाज में कैसे जारी रहने दिया जा सकता है। यह कैसी बात है? आप 2025 में इसे कैसे बढ़ावा दे रहे हैं? हम जो भी सर्वोत्तम धार्मिक प्रथा का पालन करते हैं, क्या आप उसकी अनुमति देते हैं? क्या इसी तरह एक महिला की गरिमा को बनाए रखा जा सकता है? क्या एक सभ्य समाज को इस तरह की प्रथा की अनुमति देनी चाहिए?
क्या है पूरा मामला
बता दें कि यह पूरा मामला पत्रकार बेनजीर हीना की उस जनहित याचिका पर चल रहा है, जिसमें तलाक-ए-हसन को अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का उल्लंघन बताते हुए पूरी तरह प्रतिबंधित करने की मांग की गई है। याचिकाकर्ता के पति ने कथित तौर पर एक वकील के माध्यम से तलाक-ए-हसन नोटिस भेजकर उसे तलाक दे दिया था, क्योंकि उसके परिवार ने दहेज देने से इनकार कर दिया था।