डेस्क। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप नोबेल शांति पुरस्कार पाने के लिए तड़प रहे हैं। 10 अक्तूबर को पुरस्कार का ऐलान होना है जिसे लेकर ट्रंप पूरा माहौल बनाने में लगे हैं। इसके पीछे की वजह यह कि उन्होंने ऐलान किया है कि गाजा में पीस प्लान के पहले चरण पर सहमत इजरायल और हमास दोनों सहमत हो गए हैं। ट्रंप के इस ऐलान के बाद से व्हाइट हाउस और रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से उन्हें पीस मेकर (शांतिदूत) और पीस प्रेसिडेंट (शांति का राष्ट्रपति) बताते हुए पोस्ट किए जा रहे हैं।
व्हाइट हाउस ने बताया ‘द पीस प्रेसिडेंट’
व्हाइट हाउस की ओर से बकायदा इसे लेकर अभियान चलाया जा रहा है। व्हाइट हाउस ने सोशल मीडिया मंच एक्स पर तस्वीर पोस्ट की है जिसमें डोनाल्ड ट्रंप को व्हाइट हाउस के कॉरिडोर से गुजरते हुए दिखाया गया है और लिखा है- द पीस प्रेसिडेंट।
ट्रंप को बताया गया ‘द पीस मेकर’
व्हाइट हाउस के अलावा ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी, जिसे ग्रैंड ओल्ड पार्टी भी कहते हैं, ने अपने हैंडल से एक पोस्ट किया है जिसमें ट्रंप ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ की टोपी लगाए एक कुर्सी पर बैठे हैं और तस्वीर के उपर बड़े अक्षरों में लिखा है- द पीस मेकर।
पहले भी दिख चुकी है ट्रंप की तड़प
इस बीच यहां यह भी बता दें कि, हाल ही में ट्रंप ने कहा था कि उन्होंने सात वैश्विक संघर्षों को खत्म कराने में भूमिका निभाई है, इसके बावजूद अगर नोबेल पुरस्कार उन्हें नहीं दिया जाता है तो यह अमेरिका के लिए बड़े अपमान की बात होगी। ट्रंप ने कहा था, ‘‘यह शानदार है, कोई ऐसा कभी नहीं कर पाया। फिर भी, ‘क्या आपको नोबेल पुरस्कार मिलेगा?’ बिल्कुल नहीं। वो इसे किसी ऐसे व्यक्ति को देंगे जिसने कुछ भी नहीं किया। वो इसे ऐसे व्यक्ति को देंगे जिसने युद्ध को सुलझाने के लिए क्या किया गया, इस पर कोई किताब लिखी है, हां, नोबेल पुरस्कार किसी लेखक को मिलेगा। लेकिन देखते हैं क्या होता है।’’
ट्रंप के दावों से सहमत नहीं हैं विशेषज्ञ
ओस्लो स्थित नॉर्वेजियन नोबेल समिति शुक्रवार को पुरस्कार विजेता की घोषणा करेगी, जिससे महीनों से चल रही अटकलों पर विराम लग जाएगा। ट्रंप ने बार-बार कहा है कि उन्होंने कई संघर्षों को सुलझाया है और वो इस पुरस्कार के हकदार हैं, लेकिन विशेषज्ञ अभी भी इस पर सहमत नहीं हैं। अंतर्राष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ, स्वीडिश प्रोफेसर पीटर वालेंस्टीन का कहना है कि “नहीं, इस साल ट्रंप नहीं होंगे। लेकिन शायद अगले साल? तब तक, गाजा संकट सहित उनकी विभिन्न पहलों पर से धूल हट चुकी होगी।”