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भगवान हैं या नहीं, .इस बारे में आइंस्टीन और न्यूटन क्या सोचते थे?

डेस्क। सबके मन में कभी न कभी यह सवाल आता है – क्या सच में भगवान हैं या नहीं? आमतौर पर लोग मानते हैं कि विज्ञान और भगवान अलग-अलग रास्ते हैं. लेकिन जब हम इतिहास के दो बड़े वैज्ञानिकों, न्यूटन. . .

डेस्क। सबके मन में कभी न कभी यह सवाल आता है – क्या सच में भगवान हैं या नहीं? आमतौर पर लोग मानते हैं कि विज्ञान और भगवान अलग-अलग रास्ते हैं. लेकिन जब हम इतिहास के दो बड़े वैज्ञानिकों, न्यूटन और आइंस्टीन, की सोच पढ़ते हैं तो हमें पता चलता है कि उन्होंने भी इस विषय पर गहराई से सोचा था.

ईश्वर के बारे में न्यूटन की सोच क्या थी?

आइज़ैक न्यूटन, जिन्होंने गुरुत्वाकर्षण और गति के नियम खोजे. वे भगवान को मानते थे. उनका मानना था कि ब्रह्मांड इतना बड़ा और व्यवस्थित है कि यह सिर्फ संयोग से नहीं बना हो सकता. वे कहते थे, ‘सूर्य, ग्रह और नक्षत्रों की इतनी अद्भुत संरचना तभी संभव है जब इसे किसी बुद्धिमान और शक्तिशाली अस्तित्व ने रचा हो.’

न्यूटन का मानना था कि ब्रह्मांड इतनी सटीकता और व्यवस्था से चलता है कि यह अपने आप नहीं हो सकता. इसके पीछे निश्चित रूप से कोई महान शक्ति या सृजनकर्ता की योजना है. इसका सीधा सा अर्थ है कि अर्थात न्यूटन भगवान को मानते थे और उन्हें ब्रह्मांड का रचयिता और नियमों का निर्माता समझते थे.

आइंस्टीन के लिए भगवान का अर्थ क्या था?

वहीं आइंस्टीन का विचार थोड़ा अलग था. वे किसी मंदिर-मस्जिद या चर्च वाले भगवान को नहीं मानते थे. उन्होंने यह भी कहा कि वे नास्तिक नहीं हैं.वे अक्सर कहते थे, ‘मैं उस भगवान पर विश्वास करता हूँ जिसे प्रकृति में देखा जा सकता है.’ आइंस्टीन के लिए ब्रह्मांड का गणितीय सौंदर्य, नियम और व्यवस्था ही ‘भगवान’ थे. वे कहते थे कि इस रहस्यमय ब्रह्मांड के पीछे कोई गहरी शक्ति जरूर है, जिसे हम पूरी तरह समझ नहीं सकते.
वे प्रकृति के नियमों को भगवान मानते थे. जब वे ब्रह्मांड के रहस्यमय और सुंदर नियमों को देखते, तो उन्हें लगता था कि कोई गहरी शक्ति जरूर है, जो सब कुछ चलाती है. आइंस्टीन अक्सर कहते थे, ‘मैं उस भगवान पर विश्वास करता हूँ, जिसे स्पिनोज़ा ने समझाया था.’ दार्शनिक स्पिनोज़ा के अनुसार, ‘भगवान कोई अलग व्यक्ति नहीं है, बल्कि वही प्रकृति है, जो हर जगह व्याप्त है और जिसके नियम अटूट हैं.’

ईश्वर को किस रूप में देखते थे दोनों वैज्ञानिक?

दोनों महान वैज्ञानिकों की भगवान की उपस्थिति के बारे में सोच अलग-अलग थी. एक आस्तिक था तो दूसरा प्रकृतिवादी. इसके बावजूद दोनों वैज्ञानिक भगवान के विचार को पूरी तरह नकार नहीं पाए. न्यूटन के लिए भगवान ब्रह्मांड का रचयिता थे और उन्हीं की कुशल योजना का परिणाम है कि इतने खूबसूरत ब्रह्मांड का निर्माण हुआ. वहीं आइंस्टीन के लिए भगवान प्रकृति और उसके नियमों में छिपे थे. वे छिपे हुए शब्दों में ईश्वर की उपस्थिति को स्वीकार करते थे और उन्हें प्रकृति के नियम कहकर संबोधित करते थे.
इससे स्पष्ट है कि महान वैज्ञानिक भी भगवान के अस्तित्व को पूरी तरह नकार नहीं सके. फर्क सिर्फ इतना है कि किसी ने भगवान को एक व्यक्ति के रूप में माना, तो किसी ने उसे प्रकृति और उसके नियमों में देखा. इससे हमें यह समझ आता है कि विज्ञान और आस्था एक-दूसरे के दुश्मन नहीं, बल्कि कभी-कभी एक-दूसरे के पूरक भी हो सकते हैं.