डेस्क। पश्चिम बंगाल की राजनीति इन दिनों एक अजब मोड़ पर खड़ी है। यह एक ऐसा विस्फोटक मोड़ है, जिसमें सत्ता पर काबिज तृणमूल कांग्रेस के भीतर उठा तूफान उसे ही हिलाता दिखाई दे रहा है। मुर्शिदाबाद में टीएमसी विधायक हुमायूं कबीर द्वारा शुरू की गई बाबरी मस्जिद निर्माण की मुहिम ममता बनर्जी के लिए अनचाहा तूफान बन गई है।
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में टीएमसी के निलंबित विधायक हुमायूं कबीर ने बाबरी मस्जिद की आधारशिला रखी है, जिसका बीजेपी ने कड़ा विरोध किया है। बीजेपी आईटी सेल के चीफ और पश्चिम बंगाल में भाजपा के सह-प्रभारी अमित मालवीय ने टीएमसी की कड़ी निंदा की है। अमित मालवीय ने एक्स हैंडल पर ट्वीट कर कहा कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी आग से खेल रही हैं।
इसके जवाब में भाजपा और हिंदूवादी संगठनों ने मुर्शिदाबाद में ही अयोध्या की तर्ज पर दो अलग-अलग राम मंदिर बनाने का दावा किया है। उनका ये भी कहना है कि कोई भी अपनी जमीन पर मस्जिद बना सकता है, लेकिन बाबर के नाम पर इस देश में मस्जिद नहीं बनेगी। अगर बनी तो उसका हश्र भी अयोध्या जैसा ही होगा।
सीएम ममता बनर्जी अपने ही विधायक के राजनीतिक चक्रव्यूह में फंसी
सीएम ममता बनर्जी की दिक्कत यह है कि वह कबीर को ना रोक सकती हैं और ना ही उनका समर्थन कर सकती हैं। रोकेंगी तो मुस्लिम समुदाय के भीतर नाराजगी की आग भड़केगी, और समर्थन करेंगी तो यह और साफ हो जाएगा कि ममता की राजनीति सिर्फ एकतरफा तुष्टिकरण पर टिकी है। यह ऐसी दुविधा है जिसने उन्हें एक ऐसे राजनीतिक चक्रव्यूह में घेर लिया है, जिसमें किसी भी दिशा में कदम उठाने पर नुकसान ही नुकसान है। हालाँकि इसके बावजूद उन्होंने हुमायूं कबीर को पार्टी से निकल दिया है
नया चेहरा” अब मैदान में उतर चुका है
दरअसल, हुमायूं कबीर जिस तरह बाबरी मुद्दे को बंगाल की राजनीति में उठा रहे हैं, वह साफ संकेत देता है कि वह सिर्फ एक विधायक की भूमिका में नहीं, बल्कि एक मुस्लिम नेता के तौर पर खुद को स्थापित करने की कोशिश में हैं। यही वह बिंदु है, जो ममता बनर्जी को सबसे अधिक अस्थिर कर रहा है। बंगाल का मुस्लिम वोट लंबे समय तक टीएमसी की सत्ता का ईंधन रहा है। पर आज वही वोट-बैंक भीतर से बिखरने को तैयार खड़ा है। कबीर का अभियान मुस्लिम समुदाय के बीच एक नया संदेश दे रहा है कि टीएमसी चाहे कितनी भी बड़ी पार्टी क्यों न हो, लेकिन उनकी आवाज कहने के लिए एक “नया चेहरा” अब मैदान में उतर चुका है।
टीएमसी के भीतर वैकल्पिक मुस्लिम नेतृत्व उभरने के संकेत
दरअसल, मुर्शिदाबाद वह जिला है जहां से ममता को वर्षों से अपराजेय समर्थन मिलता आया है। लेकिन उसी किले की दीवारों के भीतर अब दरारें दिखने लगी हैं। कबीर की यह मुहिम न केवल टीएमसी के भीतर गुटबाजी को बढ़ा रही है, बल्कि यह भी संकेत दे रही है कि आने वाले दिनों में टीएमसी के भीतर एक वैकल्पिक मुस्लिम नेतृत्व उभर सकता है। ममता बनर्जी इसे अपने लिए राजनीतिक खतरा मानें या पार्टी के लिए संकट, लेकिन सच यही है कि बाबरी मस्जिद का यह विवाद अब एकतरफा नहीं रहेगा। यह पूरे राज्य के सत्ता समीकरणों में बदलाव की झनकार पैदा करेगा।
हुमायूं कबीर को सस्पेंड कर ममता ने खुद के लिए नई चुनौती खड़ी कर ली है
आनन फानन में उन्होंने हुमायूं कबीर को ही पार्टी से सस्पेंड कर दिया। लेकिन ममता के इस एक्शन ने पश्चिम बंगाल का सियासी समीकरण उलझा दिया है. ममता बनर्जी के लिए यह स्थिति ‘आगे कुआं, पीछे खाई’ जैसी हो गई है. एक तरफ भाजपा का बढ़ता हिंदुत्व कार्ड है, तो दूसरी तरफ उनकी अपनी पार्टी का कोर वोटर मुस्लिम समुदाय, जो अब हुमायूं कबीर की बर्खास्तगी को एक ‘विश्वासघात’ की तरह देख सकता है. क्या आगामी विधानसभा चुनावों में ममता का यह दांव उल्टा तो नहीं पड़ेगा?
हुमायूं कबीर कोई साधारण विधायक नहीं हैं. मुर्शिदाबाद की राजनीति में उनकी हैसियत एक मास लीडर की है। उनका करियर कांग्रेस से शुरू हुआ, वे मंत्री बने, फिर टीएमसी में आए, बीच में 2019 में भाजपा में गए और फिर टीएमसी में लौट आए। इतनी बार पाला बदलने के बावजूद, उनकी निजी लोकप्रियता खासकर भारतपुर और रेजीनगर इलाके में कभी कम नहीं हुई।
मुस्लिमों में उनकी पकड़
हुमायूं कबीर की छवि एक ऐसे नेता की है जो समुदाय के मुद्दों पर अपनी ही सरकार से भिड़ने को तैयार रहता है।जब उन्होंने मुर्शिदाबाद में 6 दिसंबर 2025 को ‘बाबरी मस्जिद’ की आधारशिला रखने की बात कही, तो यह महज एक बयान नहीं था। उन्होंने साफ कहा, 25 बीघा जमीन पर इस्लामिक अस्पताल, रेस्ट हाउस, होटल-कम-रेस्टोरेंट, हेलीपैड, पार्क और मेडिकल कॉलेज बनेगा… हुमायूं कबीर को कौन रोक सकता है? मैं चुनौती देता हूं।
उनका यह ‘रॉबिनहुड’ वाला अंदाज उन्हें मुस्लिम युवाओं और ग्रामीण वोटरों के बीच बेहद लोकप्रिय बनाता है। उनके समर्थकों को लगता है कि ममता दीदी दिल्ली के डर से या हिंदू वोटों के लिए मुस्लिम मुद्दों को दबा रही हैं, जबकि हुमायूं कबीर उनकी आवाज उठा रहे हैं।
बाबरी मस्जिद का दांव और ममता की मजबूरी
ममता बनर्जी खुद को सेक्यूलरिज्म की सबसे बड़ी पैरोकार मानती हैं। लेकिन हुमायूं कबीर का दांव उनके लिए गले की हड्डी बन गया। अगर ममता बनर्जी हुमायूं कबीर को बाबरी मस्जिद या उसके नाम पर कोई स्मारक बनाने देतीं, तो भाजपा इसे पूरे बंगाल और देश भर में भुना लेती। भाजपा इसे ‘तुष्टिकरण की पराकाष्ठा’ और ‘हिंदुओं का अपमान’ बताकर ध्रुवीकरण करती। यही वजह है कि ममता के सिपहसालार फिरहाद हकीम ने तुरंत प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कबीर को सस्पेंड किया। हकीम ने तर्क दिया, हम धर्म के नाम पर भेद करने वाली राजनीति नहीं करते। हुमायूं कबीर भाजपा की मदद कर रहे हैं और बंगाल में आग लगाने की कोशिश कर रहे हैं।
ममता बनर्जी ने भी अपनी रैली में बिना नाम लिए कहा, हम सांप्रदायिक राजनीति के खिलाफ हैं, मुर्शिदाबाद के लोग दंगा नहीं चाहते। एक्सपर्ट्स का कहना है कि ममता ने यह कदम ‘हिंदू वोट बैंक’ को खिसकने से बचाने के लिए उठाया है। वे नहीं चाहतीं कि संदेशखाली या आरजी कर की घटनाओं के बाद उन पर ‘एंटी-हिंदू’ होने का एक और ठप्पा लगे।
क्या मुस्लिम वोट बैंक छिटक जाएगा?
यही वह बिंदु है जहां ममता बनर्जी के लिए खतरा सबसे बड़ा है. कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने बिल्कुल सटीक नस पकड़ी है। उन्होंने कहा, ममता बनर्जी की पार्टी उन्हें लंबे समय से बचा रही थी, अब जब लगा कि मामला हाथ से निकल रहा है, तो इस्तेमाल करो और फेंको की नीति अपना ली।
पश्चिम बंगाल में करीब 30% मुस्लिम आबादी है। मुर्शिदाबाद, मालदा और उत्तर दिनाजपुर में यह आंकड़ा 60-70% तक जाता है। अब तक यह वोट बैंक एकमुश्त टीएमसी को मिलता रहा है. लेकिन हुमायूं कबीर का सस्पेंशन मुस्लिम समुदाय में यह संदेश दे सकता है कि ममता बनर्जी अब ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ की राह पर हैं।राम मंदिर पर भाजपा मुखर है, लेकिन बाबरी के नाम पर टीएमसी अपने ही विधायक का गला घोंट रही है। अगर यह नैरेटिव जमीन पर सेट हो गया, तो टीएमसी को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
अगर कबीर ने अलग पार्टी बनाई तो क्या होगा?
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि हुमायूं कबीर शांत बैठने वालों में से नहीं हैं। उन्होंने पहले ही कहा था कि वे अगले दिन पार्टी छोड़ देंगे. अगर वे निर्दलीय लड़ते हैं या अपनी नई पार्टी बनाते हैं, तो इसके तीन बड़े असर होंगे।