सीकर. राजस्थान का सीकर जिला अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं के लिए जाना जाता है. यहां स्थित बाय गांव का दशहरा मेला उन परंपराओं में से एक है, जो अपनी अनूठी शैली के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध है. देशभर में जहां दशहरे पर रावण, मेघनाथ और कुंभकर्ण के पुतलों का दहन किया जाता है, वहीं बाय गांव का दशहरा मेला दक्षिण भारतीय शैली में आयोजित होता है. यही वजह है कि इस मेले की अपनी विशेष पहचान बन चुकी है.
इस मेले की सबसे खास बात यह है कि यहां रावण का पुतला नहीं जलाया जाता. इसके स्थान पर राम और रावण की सेनाओं के बीच युद्ध का सजीव मंचन होता है. ग्रामीण स्वयं राम और रावण की सेना का हिस्सा बनते हैं और घंटों तक युद्ध की झलकियां प्रस्तुत करते हैं. नगाड़ों की गूंज, शंखनाद और जयघोष से पूरा माहौल रणभूमि का रूप ले लेता है. दर्शक भी इस अद्भुत नजारे को देखकर रोमांचित हो उठते हैं. बाय के इस दशहरे मेले को देखने के लिए विदेशी पर्यटक भी आते हैं.
रावण की सेना आकर्षण का केंद्र
मेले का आयोजन कई दशकों से लगातार हो रहा है और हर वर्ष हजारों की संख्या में लोग इसे देखने के लिए पहुंचते हैं. ग्रामीण परंपरा के मुताबिक, मंचन के अंत में भगवान श्रीराम रावण का वध करते हैं और इसके बाद जीत का जश्न मनाया जाता है. विजय उत्सव में ढोल-नगाड़े बजते हैं और लोग नाच-गाकर अपनी खुशी व्यक्त करते हैं. बाय गांव के दशहरा मेले का सबसे बड़ा आकर्षण रावण की सेना होती है. यहां सैकड़ों गांव से युवा और बुजुर्ग रावण की सेना बनते हैं. रावण की सेना में किरदार अपनी अलग वेशभूषा में होता है. जिस तरीके से दक्षिण भारत में मुखौटे पहनकर यह त्यौहार मनाया जाता है, बिल्कुल वैसे ही यहां पर ये पर्व मनाया जाता है. इसमें शामिल ग्रामीण पारंपरिक वेशभूषा और शस्त्रों के साथ युद्ध का प्रदर्शन करते हैं. उनके अभिनय और ऊर्जा से वास्तविक युद्ध का अहसास होता है. यही वजह है कि यह मेला बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र बना रहता है.
देश और विदेश से आते हैं लोग
स्थानीय लोगों का मानना है कि यह परंपरा सिर्फ धार्मिक आस्था ही नहीं, बल्कि सामाजिक एकता का प्रतीक भी है. मेले के दौरान आसपास के गांवों के लोग एकत्रित होते हैं, जिससे आपसी भाईचारा और मेलजोल और भी मजबूत होता है. यही कारण है कि बाय गांव का दशहरा मेला न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी विशेष पहचान बना चुका है. इस दशहरे में हिंदुओं के साथ मुस्लिम समुदाय के लोग भी चाव से शामिल होते हैं. बाय के 300 ऐसे परिवार हैं जो नौकरी और व्यवसाय के लिए अनेक राज्यों में रहते हैं. इनमें एक दर्जन से अधिक परिवार ऐसे हैं, जो विदेशों में रहते हैं. ये प्रवासी लोग होली और दिवाली को नहीं, बल्कि दशहरे पर एकत्रित होकर इस पर्व को स्नेह और मिलन का अवसर मानते हैं.