नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को आठ राज्यों को उन याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने के लिए कहा है, जिनमें धार्मिक परिवर्तन से संबंधित उनके बनाए कानूनों पर रोक लगाने की मांग की गई है। चीफ जस्टिस बीआर गवई की अगुवाई वाली बेंच ने UP, MP, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, झारखंड और कर्नाटक के धार्मिक परिवर्तन कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। बेंच ने राज्यों को जवाब दाखिल करने के लिए 4 सप्ताह का समय दिया और कहा कि अगली सुनवाई 6 सप्ताह बाद होगी।
धार्मिक स्वतंत्रता को करते हैं सीमित
वरिष्ठ अधिवक्ता चंदर उदय सिंह (सिटिजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस की ओर से) ने कहा कि मामले की तत्काल सुनवाई जरूरी है, क्योंकि राज्य इन कानूनों को और सख्त बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि वास्तव में ये अल्पसंख्यकों की धार्मिक स्वतंत्रता को सीमित करते हैं।
मंदिरों का चढ़ावा नहीं मैरिज हॉल के लिए
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि मंदिरों में भक्त जो पैसा चढ़ाते हैं, वह विवाह मंडप (मैरिज हॉल) बनाने के लिए नहीं होता है। अदालत ने उस आदेश पर रोक लगाने से भी इनकार कर दिया, जिसमें कहा गया था कि मंदिर फंड को सार्वजनिक या सरकारी धन नहीं माना जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई के लिए 19 नवंबर तय की है।
महाराष्ट्र को निकाय चुनाव पर निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को महाराष्ट्र राज्य चुनाव आयोग (SEC) को समयबद्ध कार्यक्रम का पालन न करने पर फटकार लगाई। शीर्ष अदालत ने एक बार की छूट देते हुए सभी स्थानीय निकायों के चुनाव 31 जनवरी 2026 तक कराने का निर्देश दिया और स्पष्ट कर दिया कि आगे कोई विस्तार नहीं दिया जाएगा।
इसे चुनाव टालने का आधार नहीं बनाया जा सकता
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि डीलिमिटेशन (delimitation) की प्रक्रिया 31 अक्टूबर 2025 तक पूरी करनी होगी। इसे चुनाव टालने का आधार नहीं बनाया जा सकता। अदालत ने असंतोष जताते हुए कहा कि आयोग समय रहते कार्रवाई करने में विफल रहा है। बोर्ड परीक्षा मार्च 2026 में प्रस्तावित हैं, लेकिन यह चुनाव स्थगित करने का कारण नहीं हो सकता।