नई दिल्ली: इंडियन एयरफोर्स और यूनाटेड किंगडम (इंग्लैंड) रॉयल नेवी ने मंगलवार को हिंद महासागर में संयुक्त अभ्यास पूरा किया है। वायु सेना के सुखोई-30 एमकेआई, जगुआर लड़ाकू विमान, एयरबोर्न वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम (एडब्ल्यूएसीएस), एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल (एईडब्ल्यू एंड सी) विमान समेत कई बड़े विमानों ने भाग लिया है। वहीं इंग्लैंड की रॉयल नेवी की ओर से एफ-35बी जैसे कई लड़ाकू विमानों ने भाग लिया।
वायु सेना ने पोस्ट कर दी जानकारी
भारतीय वायु सेना ने इस एक्यरसाइ़ज की जानकारी देते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा कि “14 अक्टूबर 2025 को, भारतीय वायु सेना के सुखोई-30 एमकेआई, जगुआर, एडब्ल्यूएसीएस और एईडब्ल्यू एंड सी विमान, एचएमएस प्रिंस ऑफ वेल्स से रॉयल नेवी के एफ-35बी विमानों के साथ हिंद महासागर क्षेत्र में एक संयुक्त अभ्यास के लिए शामिल हुए। वायु सेना ने आगे लिखा कि इस अभियान ने आपसी विश्वाश ,सामूहिक प्रतिबद्धता को मजबूत किया।”
डीआरडीओ मिसाइलों को कर रहा अपग्रेड
वहीं दूसरी ओर रक्षा अधिकारियों ने बताया कि रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) अपनी एस्ट्रा मार्क 2 हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल की मारक क्षमता को 200 किलोमीटर से अधिक तक बढ़ाने की तैयारी कर रहा है। यह अपग्रेड पहले की तुलना में एक महत्वपूर्ण कदम होगा, जिसमें लगभग 160 किलोमीटर की मारक क्षमता का लक्ष्य रखा गया था।
बढ़ने वाली है सेना की ताकत
रक्षा मंत्रालय के एक प्रस्ताव के अनुसार, भारतीय वायु सेना लगभग 700 एस्ट्रा मार्क 2 मिसाइलें भी हासिल करने वाली है, जिन्हें बल के सुखोई और हल्के लड़ाकू विमानों के लड़ाकू विमानों के बेड़े में लगाया जाएगा, रक्षा अधिकारियों ने एएनआई को बताया।
पहले थी इतनी क्षमता
उन्होंने बताया कि पहले की योजनाओं के अनुसार, भारत की प्रमुख रक्षा अनुसंधान एजेंसी पहले एस्ट्रा मार्क 2 के लिए लगभग 160 किलोमीटर से अधिक की मारक क्षमता पर विचार कर रही थी, लेकिन अब वह 200 किलोमीटर से कहीं अधिक मारक क्षमता वाले संस्करण को विकसित करने पर काम कर रही है। भारत इस क्षेत्र में दृश्य सीमा से परे युद्ध में अपनी बढ़त बनाए रखने के लिए स्वदेशी लंबी दूरी की हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलों के विकास पर काम कर रहा है।
उन्नत प्रणाली से लैस
मिसाइल के पिछले संस्करण अस्त्र मार्क 1 की मारक क्षमता 100 किलोमीटर से अधिक है और यह उन्नत मार्गदर्शन एवं नौवहन प्रणाली से लैस है। डीआरडीओ की विभिन्न प्रयोगशालाओं के अलावा, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड सहित 50 से अधिक सार्वजनिक और निजी उद्योगों ने इस हथियार प्रणाली के सफल निर्माण में योगदान दिया है।