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हैदराबाद, कुरनूल, अमरावती और अब विशाखापत्तनम..आखिर बार-बार क्यों बदल रही आंध्रप्रदेश की राजधानी?

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यूनिवर्स टीवी डेस्क। हैदराबाद, कुरनूल, अमरावती के बाद अब विशाखापट्टन आंध्र प्रदेश की नई राजधानी होगी। मंगलवार को मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी ने ये ऐलान किया। जल्द ही सभी सरकारी दफ्तर यहां शिफ्ट हो जाएंगे। विशाखापत्तनम के साथ ही कुरनूल और अमरावती भी एक बार फिर से राजधानी बनने की रेस में थे लेकिन सरकार ने ‘भाग्य का शहर’ और ‘पूर्वी तट का गहना’ कहे जाने वाले विशाखापत्तनम को ही चुना। इसके पीछे कई दिलचस्प फैक्ट्स और कारण हैं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल की आखिर बार-बार आंध्रप्रदेश की राजधानी क्यों बदल रही है। आइए जानते हैं..
विशाखापत्तनम ही राजधानी क्यों
विशाखापत्तम आंध्रपदेश का सबसे बड़ा शहर और प्रदेश की वित्तीय राजधानी भी है। यहां हाईवे, रेल और जलमार्ग से कनेक्टिविटी दूसरे शहरों के मुकाबले काफी बेहतर है। इस शहर में संपन्न बंदरगाह, इस्पात संयंत्र और आईटी इंडस्ट्री है, जिससे यह प्रमुख आर्थिक केंद्र बन जाता है। शहर प्राकृतिक सुंदरता भी हर किसी को आकर्षित कर लेती है। यही कारण है कि देश के प्रमुख पर्यटन स्थलों में विशाखापत्तनम का नाम भी है। शहर में बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए सरकार कुछ कदम उठा रही है। ताकि इस शहर का स्वरूप उस ढंग से हो सके कि निवेशक यहां आकर्षित हो सकें।
विशाखापत्तनम नई राजधानी, फैसला कितना सही
दरअसल, विशाखापत्तम आंध्रप्रदेश का सबसे बड़ा शहर है। सरकार को उम्मीद है कि उसके इस फैसले से यह शहर निवेश का बड़ा केंद्र बन सकता है। यही कारण है कि जब राज्य से तेलंगाना अलग हुआ था, तभी से विशाखापत्तम को मुख्य राजधानी बनाने की मांग चल रही थी। टीडीपी सरकार ने भी निवेश के लिए विशाखापत्तनम को राजधानी के तौर पर इस्तेमाल किया था। इस शहर के राजधानी बनने से बेहतर कनेक्टिविटी का फायदा मिलेगा और निवेश आकर्षित हो सकता है। इससे रेवेन्यू बढ़ेगा और रोजगार के अवसर भी बढ़ सकते हैं. विकसित शहर होने के चलते सरकार को यहां सिर्फ बुनियादी ढांचे पर फोकस करना होगा।
बिना ज्यादा मेहनत होगा विकास
तेलंगाना के अलग होने के बाद आंध्रप्रदेश दक्षिण भारत का एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां आज कोई मेट्रो सिटी नहीं है। राजधानी बनने के बाद विशाखापत्तम को मेट्रो सिटी बनाने पर सरकार का फोकस होगा। हैदराबाद, बैंगलौर और चेन्नई के बीच में बसे इस शहर को विकसित बनाने से पूरे प्रदेश का विकास होगा। इसके लिए सरकार को ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ेगी।
आखिर अमरावती राजधानी क्यों नहीं
अब सवाल कि आखिर सरकार ने अमरावती को ही राजधानी क्यों नहीं चुना? दरअसल, अमरावती विजयवाड़ा और गुंटूर जैसे छोटे शहरों के बीच बसी है। अगर इस शहर को राजधानी बनाया जाता तो सरकार को बड़े पैमाने पर उपजाऊ जमीन का अधिग्रहण करना पड़ता। ऐसे में बड़ी संख्या में किसान प्रभावित होते और उनकी आजीविका भी प्रभावित होती। लिहाजा सरकार को उन्हें विकल्प देना होता।
पहले भी अमरावती पर सरकार का था फोकस
तेलंगाना जब आंध्र प्रदेश से अलग हुआ तब तत्कालीन सीएम और टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू ने अमरावती को ग्रीनफील्ड राजधानी बनाने का ऐलान किया था। जब विवाद बढ़ा तो राजधानी की पहचान के लिए शिवरामकृष्णन समिति का गठन किया गया था। समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि विजयवाड़ा और गुंटूर के बीच बसे इस शहर को प्रदेश की राजधानी नहीं बनाना चाहिए। हालांकि समिति की रिपोर्ट को अनदेखा करते हुए चंद्रबाबू नायडू ने अमरावती को सिंगापुर की तर्ज डेवलप करने का ऐलान किया और भूमि अधिग्रहण की तैयारी भी कर ली थी। हालांकि इस बीच सरकार चली गई और नए सीएम जगन मोहन रेड्डी ने इस फैसले को पलट दिया।
पहले राज्य की तीन राजधानी बनाने का था प्लान
जब राज्य में जगन मोहन रेड्डी की सरकार बनी तो एक नहीं तीन-तीन राजधानी बनाने का ऐलान किया गया। विशाखापत्तम से सरकार चलाने, अमरावती में विधानसभा लगाने और कुरनूल में न्यायिक राजधानी की बात कही गई थी। आंध्रप्रदेश के गर्वनर विश्व भूषण हरिचंदन ने एपी कैपिटल रीजन डेवलपमेंट अथॉरिटी एक्ट 2014 में संशोधन कर तीन राजधानी बनने पर मुहर भी लगा दी थी।
आंध्रप्रदेश की राजधानी का इतिहास
आंध्रप्रदेश की राजधानी के इतिहास की बात करें तो विशाखापत्तम प्रदेश की तीसरी राजधानी होगी। इससे पहले प्रदेश की राजधानी हैदराबाद थी, जिसे 1956 में कैपिटल बनाया गया था। राज्य के गठन के बाद 1 अक्टूबर 1953 को प्रदेश की राजधानी कुरनूल बनाई गई लेकिन बाद में हैदराबाद को राजधानी चुना गा। इसके बाद जब तेलंगाना अलग हुआ तो अमरावती की भी चर्चा रही लेकिन अब विशाखापत्तनम को प्रदेश की राजधानी बनाया गया है।


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