नई दिल्ली। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ने जा रहे हैं। इधर, तिरुवनंतपुरम सांसद शशि थरूर की गतिविधियां भी दावेदारी के संकेत दे रही हैं। फिलहाल, पार्टी के शीर्ष पद के लिए मुकाबला इन दोनों नेताओं की बीच ही नजर आ रहा है। शनिवार से पार्टी में नामांकन प्रक्रिया शुरू हो रही है, जो 30 सितंबर तक जारी रहेगी। 17 अक्टूबर को मुकाबला थरूर बनाम गहलोत हो सकता है। अगर पार्टी हलकों में देखें, तो 4 कारण नजर आते हैं, जो बताते हैं कि राजस्थान के मुख्यमंत्री का पलड़ा केरल सांसद के सामने भारी पड़ सकता है।
नेहरू-गांधी परिवार के वफादार
71 वर्षीय नेता को गांधी-नेहरू परिवार का करीबी माना जाता है, जो कई अहम मुद्दों पर चर्चा के लिए सोनिया गांधी या राहुल गांधी के साथ खड़े होते हैं। नेशनल हेराल्ड मामले में भी जब कांग्रेस ने सड़कों पर प्रदर्शन किया था, तो गहलोत भीड़ में नजर आए थे। पार्टी ने उन्हें गुजरात का पर्यवेक्षक भी नियुक्त किया है। इसके अलावा यह भी कहा जा रहा है कि गांधी परिवार ने ही उन्हें अध्यक्ष पद पर दावेदारी पेश करने के लिए कहा है।
कांग्रेस के दिग्गज
गहलोत का राजनीतिक सफर 4 दशक से ज्यादा पुराना है। इस दौरान उन्होंने राज्य के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर भी भूमिकाएं निभाई हैं। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें 70 के दशक में केंद्रीय मंत्री बनाया था। वह ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के महासचिव भी हैं। जबकि, थरूर 2009 में पार्टी में आए। तब से ही वह तिरुवनंतपुरम सीट से लोकसभा सदस्य हैं। वह ऑल इंडिया प्रोफेशनल्स कांग्रेस (AIPC) के अध्यक्ष रह चुके हैं।
प्रशासन का अनुभव
थरूर मई 2009 से लेकर अप्रैल 2010 तक विदेश मंत्रालय में राज्य मंत्री रहे और मानव संसाधन विभाग में उन्होंने यह जिम्मेदारी अक्टूबर 2012 से मई 2014 तक संभाली। 20 से ज्यादा किताबों के लेखक केरल सांसद संयुक्त राष्ट्र में अलग-अलग पदों पर करीब 30 सालों तक रहे। जबकि, गहलोत फिलहाल राजस्थान के मुख्यमंत्री हैं। इससे पहले वह यह पद 1998-2003, 2008-2013 में भी संभाल चुके हैं। इसके अलावा वह इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और पीवी नरसिम्हा राव सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे।
साफ छवि
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, थरूर पर आरोप लगे थे कि उन्होंने IPL में शेयर खरीदने के लिए मंत्री पद का गलत इस्तेमाल किया था। इन आरोपों के चलते साल 2010 में उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। साल 2014 में उनकी पत्नी का रहस्यमयी हालात में निधन हुआ और उन्हें आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप थरूर पर लगे थे। हालांकि, वह साल 2021 में सभी आरोपों से बरी हो गए थे। इससे उलट गहलोत 4 दशक से ज्यादा पुराने सियासी करियर में विवादों से बचते नजर आए हैं।
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