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क्या सच में भूत होते हैं, दिग्गज हॉलीवुड प्रोड्यूसर अर्थर की चादर बार-बार कौन खींच रहा था?

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डेस्क : दुनिया की सभी संस्कृतियों में भूतों के अस्तित्व को किसी न किसी रूप में स्वीकार किया जाता है। यह ऐसा विषय है, जिसका वैज्ञानिक प्रमाणीकरण अभी तक संभव नहीं हो पाया है। बहुत से लोग मृत्यु के बाद के जीवन को भी सत्य मानते हैं। मौत से वापस लौटे कुछ लोगों ने अपने अनुभव भी साझा किए हैं, जिनको स्वीकार करना या एकदम नकार देना विज्ञान के लिए भी संभव नहीं होता है। गांव-शहर में अजब-गजब की प्रचलित कहानियां मिल जाएंगी। आक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालयों में बने हुए घोस्ट क्लबों के जरिए जिज्ञासु छात्र पैरानार्मल एक्टिविटीज पर शोध करते हैं।
पैरानार्मल एक्टिविटीज पर अनुसंधान करने वाले डेनिस और मिशेल वासकुल ने भूतों की दुनिया के बारे में एक किताब लिखी, जिसका नाम था ‘घोस्टली एनकाउंटर, द होन्टिंग ऑफ एवरीडे लाइफ’। इस किताब में अपने जीवन में पैरानार्मल एक्टिविटिज का अनुभव करने वाले व्यक्तियों की कहानियों को साझा किया गया है। ज्यादातर लोगों को कहना था कि उन्होंने जिन चीजों को देखा या अनुभव किया उसके बारे में सही-सही बताना आसान नहीं है। उनके अनुभव सामान्य जीवन से भिन्न थे।
द्वितीय विश्व युद्ध का एक डरावना वाकया
इसी प्रकार पुलित्जर पुरस्कार प्राप्त अमेरिका के पत्रकार और फिल्म प्रोड्यूसर अर्थर कैन्टोर ने एक सराय में रात गुजराते समय हुए अपने अनुभवों के बारे में लिखा है। वे द्वितीय विश्व युद्ध के समय इंग्लैंड गए हुए थे। लंदन जाते हुए उन्हें केसिंगटन में रुकना पड़ा। उन्हें रुकने के लिए बोर्डिग हाउस में कमरा दिया गया। रात को उनका सामना एक भूत से हुआ, जो प्रकाश पुंंज के रूप में उनके कमरे में मौजूद था और रात को बार-बार उनकी चादर को खींच लेता था। पूरी रात उनको तरह-तरह की आवाजें आती रहीं।
भूतों का रहस्य
भूतों के अनुभवों के बारे जब लोगों से पड़ताल की जाती है, तो उनका कहना होता है कि उन्होंने दरवाजों -खिड़कियों को खुद बंद या खुलते देखा, सामान को गिरते या हवा में उड़ते देखा, भूत को सफेद या विशेष प्रकार के कपड़े पहन रखे थे। यदि इन बातों पर तर्क की कसौटी पर कसा जाए, तो कई प्रकार के सवाल उठेंगे। यदि भूत, आत्मा या विशेष प्रकार की ऊर्जा होती है, तो कपड़े पहने हुए, टोपी लगाए हुए, हाथ में कुछ लिए हुए क्यों दिखायी देती हैं। यदि भूतों का शरीर भौतिक रूप में नहीं है, तो किस प्रकार दरवाजे-खिड़कियों को बंद या खोल पाते हैं। कैमरे से खिंची हुई तस्वीरों में भूत किस प्रकार मुस्कराते, झांकते, डरते हुए दिख जाते हैं।
भूतों के होने का कोई वैज्ञानिक प्रमाण
मौजूदा दौर में ऐसी कोई वैज्ञानिक तकनीक नहीं है, जिसके सहारे भूतों के बारे में कुछ प्रमाणिक बताया जा सके या देखा जा सके। केवल किस्से, कहानियों, व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर व्याख्या की जाती है। हालांकि, महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन के थर्मोडायनेमिक्स के नियमों के आधार पर कुछ कहा जा सकता है।
शरीर से निकली ऊर्जा ही आत्मा है
ऊर्जा के संरक्षण के नियमानुसार न तो ऊर्जा को पैदा किया जा सकता है, न ही खत्म किया जा सकता है। केवल एक रूप से दूसरे में रूप में रूपांतरित किया जा सकता है। ऐसे में क्या इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है कि शरीर से निकली ऊर्जा ही आत्मा है, जिसके पास अपनी स्मृति और कुछ कार्य करने की क्षमता होती है। तो जानवरों की ऊर्जा भी भूत बनती होगी क्या उसका अनुभव भी भूतों के रूप में होता है। यह ऐसा विषय है, जिस पर जितना अधिक चिंतन किया जाएगा उतने ही तर्क और सवाल निकलेंगे। इन क्षेत्र में ठोस प्रमाणों और वैज्ञानिक अनुसंधान की आवश्कता है।


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