कोलकता । पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में जीत के बाद तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो और राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ विरोधी दलों को एकजुट करने की कवायद शुरू की थी, लेकिन पश्चिम बंगाल में लगातार घोटालों के खुलासे, राष्ट्रपति चुनाव और उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर विरोधी दलों से कड़वाहट के बाद तृणमूल कांग्रेस गठबंधन को लेकर बैकफुट पर है। साल 2024 लोकसभा चुनाव के पहले तृणमूल कांग्रेस ‘देखो और इंतजार करो’ की नीति अपना रही है और सभी विकल्प खुला छोड़ रही है और पार्टी को मजबूत करने में जुटी है।
बता दें कि दिल्ली में हुए राष्ट्रीय जनता दल के राष्टीय अधिवेशन में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राजद के अध्यक्ष लालू यादव ने बीजेपी के खिलाफ विरोधी दलों को एकजुट होने का आह्वान करते हुए कहा था कि साल 2024 में बीजेपी को हराने के लिए सभी विरोधी पार्टियों को एक मंच पर आना होगा।
लोकसभा चुनाव अभी दूर, पार्टी को मजबूत करना प्राथमिकता- सौगत
टीएमसी के सांसद सौगत रॉय ने लालू प्रसाद यादव के बयान पर कहा कि अभी लोकसभा चुनाव दूर है. लोकसभा चुनाव 2024 में है। विभिन्न विरोधी दल बीजेपी के खिलाफ एकजुट होने की बात कर रहे हैं, लेकिन इसके पहले यह जरूरी है कि सभी पार्टियां अपने राज्य में खुद को शक्तिशाली करें। तृणमूल कांग्रेस शुरू से ही बीजेपी और बीजेपी की नीतियों के खिलाफ लड़ाई लड़ रही है। विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी ने बीजेपी को बंगाल में बुरी तरह से पराजित किया था और टीएमसी लगातार बीजेपी के खिलाफ लड़ रही है।”
तृणमूल कांग्रेस की विरोधी दलों से बढ़ी है खटास, घटी है विश्वासनीयता
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक पार्थ मुखर्जी कहते हैं कि टीएमसी भले ही बीजेपी के खिलाफ लड़ाई की बात कह रही है, लेकिन राष्ट्रपति चुनाव और उपराष्ट्रपति चुनाव के बाद विरोधी दलों से तृणमूल कांग्रेस की खटास बढ़ी है। राष्ट्रीय स्तर पर ममता बनर्जी और उनकी पार्टी की विश्वासनीयता भी घटी है। अन्य विरोधी पार्टियों में टीएमसी के प्रति विश्वासनीयता घटी है। कांग्रेस से तृणमूल कांग्रेस की पहले से ही दूरी बनी हुई थी। राष्ट्रपति चुनाव और उपराष्ट्रपति चुनाव के दौरान शरद पवार से भी टकराव सामने आया है। विधानसभा चुनाव के बाद ममता बनर्जी ने खुद पहल की थी, लेकिन विरोधी दलों से बहुत ही सकारात्मक जवाब नहीं मिला था। दिल्ली दौरे के दौरान पीएम मोदी से कई बार मुलाकात और विरोधी दल के नेताओं से मुलाकात नहीं करने पर भी सवाल उठे थे। कुल मिला कर तृणमूल कांग्रेस समझ गयी है कि फिलहाल राज्य को मजबूत करने के सिवा उसके पास कोई विकल्प नहीं है और देखो और इंतजार करो की नीति अपना ली है।
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