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देवशयनी एकादशी : आज से आरंभ होगा भगवान विष्णु का शयन काल, 5 महीने तक रहें सावधान

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ङेस्क। पौराणिक वृतांत के अनुसार जब श्रीहरि ने वामन रूप में अवतार धारण कर चक्रवर्ती सम्राट राजा बली के पास तीन कदम धरती यज्ञ के लिये दान में मांगने गये। तब राजा बली के द्वारा तीन कदम धरती दान देने के उपरांत जब श्रीहरि विष्णु ने पहले कदम में सम्पूर्ण धरती, आकाश, पाताल, इत्यादि को नाप लिया। दूसरे कदम में ब्रह्म लोग, देव लोक और सम्पूर्ण ब्रह्मांड को नाप दिया और तीसरा पग रखने के लिये राजा बली से पूछा तो राजा बली ने तीसरा पग अपने सिर पर रखने को कहा ताकि उनका दान वचन संकल्प पूरा हो सके। तब श्रीहरि विष्णु जी ने तीसरा पग राजा बली के सिर पर रखा। जिसके प्रभाव से राजा बली का पाताल लोक में गमन हो गया। इस पर श्रीहरि विष्णु जी ने राजा बली को पाताल का राजा घोषित किया और आशीर्वाद दिया कि वह स्वयं उनके राज्य की रक्षा करेंगे। जिस समय भगवान विष्णु चार माह के क्षीरसागर में योग निद्रा के लिये जाते हैं तो उनका एक रूप राजा बली को दिये वचन पूर्ण करने में भी रहता है। इन्हीं चार माह की निद्रा को चर्तुमास कहा जाता है और इन चार माह के लिये सृष्टि का संचालन भगवान शिव को दे दिया जाता है।
हर वर्ष 24 एकादशियां होती हैं और हर माह 2 एकादशी होती हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवशयनी एकादशी कहा जाता है। यह एकदशी 29 जून 2023 के दिन रहेगी। एकादशी तिथि का आरम्भ प्रातः 3 बजकर 20 मिनट से लेकर समाप्ती अगले दिन प्रातः 2 बजकर 43 मिनट पर रहेगी।
सनातन धर्म में देवशयनी एकादशी का विशेष महत्व होता है। इस दिन से आगामी होने वाले 4 माह तक के लिये शुभ एवं मांगलिक कार्यों पर पाबंदी लगा दी जाती है। इस बार यह महीना चार न होकर 5 माह का है अर्थात इस बार श्री हरि विष्णु जी की निद्रा का समय चार माह की बजाय पांच माह रहेगा। इस बार अधिक मास होने के कारण यह अवधि 5 महीने की रहेगी। इस एकादशी पर पूर्ण श्रद्धा भावना से किया गया एकादशी का व्रत पूर्ण फल प्रदान करने वाला हो जाता है। जिसके प्रभाव स्वरूप सांसारिक सुख भोगने के पश्चात व्यक्ति के लिये मोक्ष के द्वार भी खुल जाते हैं।
इस दौरान गृह प्रवेश या किसी बिल्डिंग की नींव रखना, हवन, भंडारा इत्यादि करना या करवाना जैसे कार्यों को किया जा सकता है परन्तु विवाह, मुंडन या ऐसा कोई कार्य जिसका सीधा-सीधा प्रभाव वैवाहिक या भौतिक जीवन पर पड़ता हो। ऐसे सभी कार्य वर्जित रहते हैं। अगर इस दौरान ऐसा कोई कार्य किया जाए तो उसके सफल होने की संभावनाएं बहुत ही क्षीण रहती हैं। आगे देव इच्छा सर्वोपरी है क्योंकि उनकी इच्छा के बिना तो पत्ता भी नहीं हिल सकता।


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