बदल गए म्यूचुअल फंड्स से जुड़े नियम, प्रॉफिट शॉर्ट टर्म में हो या लॉन्ग टर्म में, निवेशकों को पड़ेगा ‘भारी’
नई दिल्ली। ‘म्यूचुअल फंड…सही है’ यह विज्ञापन तो आपने कई बार देखा होगा, लेकिन सरकार का नया कदम उठने के बाद शायद म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) सही नहीं रह जाएगा। सरकार ने बजट 2023 में म्यूचुअल फंड से जुड़े कई नियमों में बदलाव की घोषणा की थी। आज 24 मार्च को संसद में नए बजट का फाइनेंस बिल भी पास हो गया है। ऐसे होने पर म्यूचुअल फंड के निवेशकों को भारी नुकसान होगा, क्योंकि नए नियम के तहत डेट म्यूचुअल फंड से होने वाला मुनाफा अब शार्ट टर्म कैपिटल गेन (STCG) माना जाएगा। इसके अलावा लांग टर्म कैपिटल गेन पर भी अब इंडेक्सेशन का लाभ खत्म हो जाएगा। आइये इसे विस्तार से समझते हैं…
दरअसल, बजट में यह कहा गया था कि ऐसे म्यूचुअल फंड जिनका इक्विटी में निवेश 35 फीसदी से कम है, उनके मुनाफे को शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन (STCG) की श्रेणी में रखा जाएगा। भले ही इसके निवेश की अवधि कितनी भी हो। अभी डेट म्यूचुअल फंड को अगर 3 साल से ज्यादा समय के लिए निवेश किया जाता है तो उससे होने वाले मुनाफे को लांग टर्म कैपिटल गेन (LTCG) की श्रेणी में रखा जाता है। इस पर बिना इंडेक्सेशन के 10 फीसदी का फ्लैट टैक्स और इंडेक्सेशन का लाभ लेने पर 20 फीसदी टैक्स चुकाना होता है। यहां इंडेक्सेशन का मतलब है कि मुनाफे में से महंगाई की दर को घटाकर शुद्ध लाभ गिना जाता है। यही कारण है कि निवेश सलाहकार फिक्स्ड डिपॉजिट यानी एफडी के बजाए लोगों से यहां पैसे लगवाते थे।
बदलाव से क्या होगा नुकसान
सीएनबीसी न्यूज18 के मुताबिक, नया नियम डेट म्यूचुअल फंड में पैसे लगाने वालों के लिए सीधे तौर पर घाटे का सौदा है। अब इस विकल्प में निवेशक कितने भी समय तक पैसा रखेंगे, उसके मुनाफे को STCG की श्रेणी में गिना जाएगा। इसका नुकसान यह होगा कि निवेशकों को अपने टैक्स स्लैब के हिसाब से ही मुनाफे पर टैक्स भरना पड़ेगा। टैक्स स्लैब 30 फीसदी तक जाता है तो निवेशकों को भी अब 30 फीसदी तक टैक्स भरना पड़ सकता है। भले ही वे अपने पैसे कितने भी लंबे समय तक रोक कर रखें।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
Edelweiss Mutual Fund की प्रबंध निदेशक और CEO राधिका गुप्ता ने भी इस मसले पर अपनी राय रखी है। उन्होंने ट्वीट किया- मुझे इस बात की पूरी उम्मीद है कि फाइनेंस बिल में डेट म्यूचुअल फंड पर लांग टर्म कैपिटल गेन को खत्म करने के फैसले की दोबारा समीक्षा की जाएगी। साथ ही इंडेक्सेशन का लाभ खत्म करने पर भी सरकार विचार करेगी। देश के कॉरपोरेट बॉन्ड मार्केट को भी डेट म्यूचुअल फंड के मजबूत इकोसिस्टम की जरूरत है। इतना ही नहीं पिछले साल के प्रदर्शन को देखें तो पता चलता है कि अभी बॉन्ड कैटेगरी में कितना इनोवेशन हो सकता है।
क्यों हो रहा यह बदलाव
कुछ एक्सपर्ट का यह भी मानना है कि बैंक एफडी में लोगों का रुझान दोबारा बढ़ाने के लिए ही डेट म्यूचुअल फंड पर निशाना साधा जा रहा है।टैक्स मामलों के जानकार बलवंत जैन का कहना है कि इससे होने वाले मुनाफे पर अब ज्यादा टैक्स चुकाना होगा। जाहिर है कि लोग पैसे बचाने के लिए एफडी की ओर भागेंगे। निवेशक अब ऐसे म्यूचुअल फंड पर दांव लगाना ज्यादा पसंद करेंगे, जिनका अधिकतर एक्पोजर इक्विटी में होगा. इंडेक्सेशन हटाए जाने से अब निवेशकों को महंगाई का लाभ नहीं मिलेगा।
ज्यादा नुकसान किसे
एक्सपर्ट का कहना है कि डेट फंड जैसे फिक्स्ड इनकम देने वाले विकल्पों में खुदरा निवेशकों की ज्यादा हिस्सेदारी नहीं है। इसका मतलब हुआ कि छोटे निवेशक इस फैसले से ज्यादा प्रभावित नहीं होंगे। लेकिन, संस्थागत निवेशकों और हाई नेटवर्थ वाले निवेशकों को इस फैसले से तगड़ा झटका लग सकता है।
अब कहां जाएंगे निवेशक
खुदरा निवेशक हों या संस्थागत, डेट म्यूचुअल फंड में पैसे इसीलिए लगाते थे, क्योंकि इसमें इंडेक्सेशन का लाभ मिलता है। इसका मतलब हुआ कि आपको इन फंड से हुए मुनाफे में से महंगाई की दर घटाकर शेष बची राशि पर ही टैक्स देना होता है। नया फैसला इन सारे लाभ को खत्म कर देगा और निवेशक को इनसे हुई कमाई पर सीधे अपने स्लैब के हिसाब से टैक्स चुकाना पड़ेगा। ऐसे में निवेशक सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड, एफडी और एनसीडी जैसे विकल्पों में ज्यादा पैसे लगाएंगे।
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