पटना। बिहार में नई सरकार के गठन और विधायकों के शपथ ग्रहण के साथ ही विधानसभा स्पीकर का चुनाव भी हो गया है। भाजपा के कद्दावर नेता व विधायक प्रेम कुमार को सर्वसम्मति से स्पीकर चुन लिया गया है।
स्पीकर चुनाव के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव खुद प्रेम कुमार को अध्यक्ष की कुर्सी तक लेकर गए और उन्हें बैठाकर बधाई दी। इस मौके पर सीएम नीतीश कुमार ने उनकी जीत पर पूरे सदन की तरफ से शुभकामनाएं दीं और सभी नवनिर्वाचित विधायकों को भी बधाई दी।
तेजस्वी यादव बने नेता प्रतिपक्ष
प्रेम कुमार 35 साल से अपराजय रहे हैं। वह अब तक लगातार 9 बार विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं। 1990 से वह गया टाउन सीट से भाजपा की टिकट पर चुनाव जीतते आ रहे हैं।
इकलौता नामांकन भरा
भारतीय जनता पार्टी के सबसे अनुभवी विधायकों की श्रेणी में रहे डॉ. प्रेम कुमार का 202 सीटों की बड़ी जीत के साथ ही उनका नाम चल निकला था। इंतजार हो रहा था कि नीतीश कुमार मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लें और मंत्रिपरिषद् के बाकी सदस्यों का भी शपथ ग्रहण हो जाए। यह हुआ और तय हो गया कि डॉ. प्रेम कुमार के सामने इस कुर्सी के लिए किसी की ओर से कोई विकल्प नहीं है। डॉ. प्रेम कुमार ही होंगे। सोमवार को वही हुआ। नामांकन भरा और इकलौता। 35 विधायकों वाला महागठबंधन सामने किसी को इस पद के लिए खड़ा करने तक की हिम्मत नहीं जुटा सका। यानी, निर्विरोध चयन की घोषणा ही बाकी है।
कहां रहते हैं, किस जाति के हैं, परिवार में कौन-कौन है?
गयाजी शहर के अंदर गया इलाके की नई सड़क पर आवास है। कहार जाति से हैं, जो चंद्रवंशी समुदाय से है। परिवार में पत्नी के अलावा एक बेटा-बेटी हैं। दोनों शादीशुदा हैं। बेटे भारतीय जनता युवा मोर्चा के पदाधिकारी हैं। आम तौर पर सहज उपलब्ध रहना डॉ. प्रेम कुमार की खूबी है, जिसके कारण वह लगातार 35 साल से चुनाव जीत रहे हैं। कांग्रेस की सीट रही गया टाउन में डॉ. प्रेम कुमार ने 1990 में पहली बार ताल ठोकी तो शुरू से अब तक कभी नहीं हारे।
सामने प्रत्याशी बदल, दल बदले… प्रेम कुमार झंडा थामे रहे
1980-85 तक बाकी जगहों की तरह गया टाउन विधानसभा सीट भी कांग्रेस के वर्चस्व वाली रही थी। 1990 में इस वर्चस्व को डॉ. प्रेम कुमार ने तोड़ा। यह वह दौर था, जब भारतीय जनता पार्टी बिहार में अस्तिस्त बनाने की कोशिश कर रही थी। तब गया टाउन क्षेत्र एक बार भाजपा का हुआ तो डॉ. प्रेम कुमार और उनकी पार्टी एक-दूसरे का पर्याय ही बन गई। कभी न तो पार्टी ने वहां प्रत्याशी बदला और न जनता ने अपना विधायक।
सामने पहले सीपीआई के शकील अहमद खान, फिर मसूद मंजर रहे। जब यह लोग हर दांव खेलकर लौट गए, तो कांग्रेस ने संजय सहाय को उतारा। उनकी और बड़ी हार हुई। फिर यहां सीपीआई ने दम दिखाया, लेकिन 28417 मतों से करारी हार मिली। आगे, यानी 2015 से लगातार कांग्रेस इस पर उम्मीदवार दे रही है, लेकिन डॉ. प्रेम कुमार को सिर्फ जीत के अंतर का प्रभाव दिखता है, बाकी अविजीत हैं।