कोलकाता । पश्चिम बंगाल में अवैध रूप से रहने वाले बांग्लादेशी नागरिकों में खलबली मची हुई है, और इसकी वजह है स्पेशल इंटेसिव रिवीजन यानी एसआईआर। कोलकाता की गुलशन कॉलोनी जैसे एरिया खाली हो रहे हैं, जहां अवैध बांग्लादेशियों की रिहाइश मानी जाती थी। बड़ी संख्या में बांग्लादेशी, बॉर्डर पर पहुंच रहे हैं और BSF से उन्हें उनके वतन वापस भेजने की गुहार लगा रहे हैं। बांग्लादेश वापस जा रहे एक बांग्लादेशी ने बताया कि वह 2020 से पश्चिम बंगाल में अवैध तरीके से रह रहा था। उसने कबूला कि वह अवैध तरीके से भारत में आया था। उसने अपनी पहचान का भारत में कभी कोई दस्तावेज भी नहीं बनवाया। अब सवाल है कि बिना किसी आइडेंटिटी प्रूफ के वह पिछले 5 साल से कैसे बिना रोक-टोक के भारत में रह रहा था और अब एसआईआर के शुरू होते ही वह क्यों अपने देश भागने को मजबूर हो गया।
23 साल में राज्य में वोटरों की संख्या में 66 प्रतिशत की बढ़ोतरी
यही कारण है कि चुनाव आयोग की ओर से कराए जा रहे वोटर लिस्ट स्पेशल इंटेसिव रिविजन यानी एसआईआर पर राजनीति गरम है। गैर एनडीए शासित राज्यों की सरकारें और राजनीतिक दल खुलकर एसआईआर की आलोचना कर रहे हैं। पश्चिम बंगाल में एसआईआर पर तलवारें खिंची हैं। बांग्लादेश के बॉर्डर पर भारत से वापस लौटने वाले बांग्लादेशियों की लाइन लगी है। इस बीच पश्चिम बंगाल से एक चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आया है। 2002 से 2025 के बीच करीब 23 साल में राज्य में वोटरों की संख्या में 66 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। पश्चिम बंगाल में 10 जिलों में वोटरों का आंकड़ा अप्रत्याशित तौर से बढ़ा है, जिनमें 9 बांग्लादेश बॉर्डर से जुड़े हैं। माना जा रहा है कि एसआईआर के बाद सच सामने आएगा कि अचानक लाखों की तादाद में वोटर कहां से आए। ये घुसपैठिये हैं या उत्पीड़न के शिकार हिंदू शरणार्थी, जिसका दावा टीएमसी कर रही है।
2002 में हुई थी आखिरी बार एसआईआर
चुनाव ने 2002 में स्पेशल इंटेसिव रिविजन (एसआईआर) के जरिये वोटर लिस्ट की जांच की थी। इसके बाद से पूरे देश में वोटरों के नाम जुड़ते चले गए। बीते 23 साल के दौरान पश्चिम बंगाल में रजिस्टर्ड वोटरों की संख्या 4.58 करोड़ से बढ़कर 7.63 करोड़ हो गई है। दो दशक पहले राज्य में 18 जिले थे, अभी 23 जिले हैं। भारतीय निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के अनुसार, इस दौरान बंगाल के 10 जिलों में वोटरों की संख्या में 70 फीसदी या उससे ज्यादा नए वोटरों के नाम जोड़े गए। इनमें 9 जिले बांग्लादेश के बॉर्डर पर बसे हैं। बीरभूम सिर्फ ऐसा जिला है, जिसकी सीमा बांग्लादेश से नहीं जुड़ती है मगर वहां 73.44 प्रतिशत वोट बढ़े।
उत्तर दिनाजपुर में रेकॉर्डतोड़ वोटर बढ़े
पश्चिम बंगाल के उत्तर दिनाजपुर में रेकॉर्ड 105.49 प्रतिशत वोटर बढ़े। बांग्लादेश बॉर्डर के पास बसे मालदा में 94.58 प्रतिशत और मुर्शिदाबाद में 87.65 प्रतिशत वोटरों के नाम जोड़े गए। दक्षिण 24 परगना में बढ़े वोटरों का आंकड़ा 83.30 प्रतिशत रहा। जलपाईगुड़ी में 82.3 प्रतिशत, कूचबिहार में 76.52 प्रतिशत और उत्तर 24 परगना में 72.18 प्रतिशत वोटर बढ़ गए। नादिया जिले में 71.46 प्रतिशत और दक्षिण दिनाजपुर में 70.94 प्रतिशत वोटर बढ़े। जब बॉर्डर वाले इलाकों में वोटर लिस्ट लंबी हो रही थी, तब राजधानी कोलकाता में सिर्फ 4.6 प्रतिशत वोटर बढ़े। 2002 में कोलकाता में 23,00,871 मतदाता थे, जो बढ़कर सिर्फ 24,07,145 हो गए।
बीजेपी, टीएमसी में खिंची तलवारें
पश्चिम बंगाल के 10 जिलों में लाखों वोटर कैसे बढ़े, इस पर अब राजनीतिक घमासान जारी है। बीजेपी नेता राहुल सिन्हा का आरोप है कि बांग्लादेश से आए मुस्लिम घुसपैठियों ने राजनीतिक संरक्षण हासिल कर वोटर लिस्ट में अपना नाम दर्ज कराया है। घुसपैठियों के कारण बॉर्डर से सटे 7 जिलों की डेमोग्राफी बदल गई है। दूसरी ओर सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस (TMC) का दावा है कि बांग्लादेश में उत्पीड़न से परेशान होकर हिंदू शरणार्थी भी बॉर्डर क्रॉस कर भारत आए हैं। टीएमसी प्रवक्ता अरूप चक्रवर्ती ने कहा कि बांग्लादेश के हिंदू शरणार्थी उत्पीड़न के कारण चीन नहीं गए, बल्कि असम, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में बस गए। उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी मुस्लिम को घुसपैठिया बताकर झूठे नैरेटिव गढ़ रही है। उन्होंने कहा कि बांग्लादेशी शरणार्थियों के वोटों के कारण ही बीजेपी को कूचबिहार, अलीपुरद्वार और वनगांव जैसे क्षेत्रों में जीत मिली।
टीएमसी ने हिंदू शरणार्थियों को बताया कारण
टीएमसी और वाम मोर्चा सीमावर्ती जिलों में बढ़ती आबादी के लिए मुस्लिम घुसपैठियों के साथ हिंदू शरणार्थियों और बर्थ रेट को बड़ा कारण मानती है। सीपीएम के नेता एमडी सलीम ने कहा कि वाम मोर्चा शासन के दौरान छोटे कस्बों में विकसित किया गया, इसलिए गांवों के लोग सीधे कोलकाता नहीं आए। उन्होंने बीएसएफ की भूमिका पर भी सवाल उठाया। सलीम ने यह भी कहा कि कुछ हिंदू शरणार्थी भी आए हैं, जिसके कारण बांग्लादेश में हिंदू आबादी कम हुई है।