नई दिल्ली। पांच राज्यों– राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम- में विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान हो चुका है। इन सभी राज्यों में नई सरकार के गठन के लिए तो ये चुनाव महत्वपूर्ण हैं ही, लेकिन बात अगर राष्ट्रीय राजनीति की करें तो राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ पर खास फोकस रहेगा।
क्यों अहम हैं तीन राज्य
इन तीनों राज्यों को ज्यादा अहमियत मिलने के पीछे कई वजहें हैं।
यहां मुख्य मुकाबला BJP और कांग्रेस के बीच होने वाला है। अपने-अपने गठबंधनों के साथ ये दोनों ही दल अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में केंद्र में सत्ता के दावेदार भी हैं।
2018 विधानसभा चुनावों में इन तीनों राज्यों में कांग्रेस ने BJP के हाथ से सत्ता छीनी थी। हालांकि स्पष्ट बहुमत उसे सिर्फ छत्तीसगढ़ में मिला था, जहां 15 साल से सत्तारूढ़ BJP मात्र 15 सीटों पर सिमट गई थी। राजस्थान में सचिन पायलट के बागी तेवर के बावजूद अशोक गहलोत पांच साल सरकार चलाने की जादूगरी दिखा गए, लेकिन मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के चलते कमलनाथ सत्ता गंवा बैठे।
इन तीनों राज्यों में 2018 के आखिर में हुए विधानसभा चुनाव में जनादेश कांग्रेस के पक्ष में गया था, लेकिन इसके कुछ ही महीनों बाद अप्रैल-मई, 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में यहां के वोटरों ने BJP के पक्ष में उससे भी अधिक स्पष्ट जनादेश दिया।
खैर, इन पांच राज्यों में चुनाव नया विपक्षी गठबंधन ‘I.N.D.I.A’ बनने और BJP द्वारा NDA को सक्रिय करने के बाद होने जा रहे हैं। इनमें से तीन बड़े राज्यों में मुख्य मुकाबला दोनों बड़े राष्ट्रीय दलों के बीच ही होगा। बेशक गुजरात विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन के बाद AAP को भी राष्ट्रीय दल का दर्जा मिल गया है। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में महत्वाकांक्षी AAP दांव लगाएगी ही, लेकिन जो सीटें अभी कांग्रेस के पास हैं, उन पर प्रत्याशी उतारने से वह विपक्षी वोटों का ही बंटबारा करेगी। इसका विपक्षी गठबंधन पर नकारात्मक असर पड़ेगा। इन राज्यों में BSP का भी सीमित असर है, जिसका नुकसान कांग्रेस को ही होने की आशंका है। अब राजनीतिक समीकरणों पर नजर डालते हैं।
200 सदस्यीय राजस्थान विधानसभा में कांग्रेस के पास 100 सीटें हैं, जबकि BJP के पास मात्र 73 सीटें। अन्य विधायकों की संख्या 26 है। जाहिर है, कांग्रेस के समक्ष चुनौती अपने दम पर बहुमत का आंकड़ा छूने के लिए अपनी सीटों में कुछ बढ़ोतरी करने की होगी, जबकि BJP को वह आंकड़ा छूने के लिए लंबी छलांग लगानी होगी।
कांग्रेस के विरुद्ध सत्ता विरोधी भावना स्वाभाविक है, लेकिन उसे कम करने के लिए गहलोत सरकार ने पिछले कुछ महीनों में जन-कल्याणकारी योजनाओं की झड़ी लगाई है। चुनाव से ऐन पहले लाई गईं ये योजनाएं कितना असर दिखाएंगी यह तो समय ही बताएगा, लेकिन गहलोत-पायलट में सुलह से कांग्रेस नेतृत्व एकजुटता का संदेश देने में सफल दिख रहा है। शर्त यह है कि टिकट वितरण में बवाल न हो।
BJP के लिए आंतरिक गुटबाजी बड़ी चुनौती साबित हो सकती है। दो बार की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की नाराजगी किसी से छिपी नहीं है। मान-मनौव्वल की अटकलों पर स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह कह कर पूर्ण विराम लगा दिया है कि BJP किसी चेहरे पर नहीं, कमल के निशान पर चुनाव लड़ेगी।
230 सदस्यीय मध्य प्रदेश विधानसभा में कांग्रेस ने 114 सीटें जीती थीं तो BJP ने 109, अन्य की संख्या सात रहीं। लेकिन सिंधिया के नेतृत्व में 22 विधायकों की बगावत ने सत्ता पलट दी।
अगर संख्या बल की दृष्टि से देखें तो वहां BJP-कांग्रेस में ज्यादा नजदीकी मुकाबले की संभावना है। चुनाव पूर्व नेताओं के दलबदल ने BJP की चिंताएं बढ़ाई हैं तो सत्ता विरोधी भावना कम करने के लिए केंद्रीय मंत्रियों-सांसदों को उम्मीदवार बनाने का दांव चला गया है, लेकिन इससे 18 साल के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह भी लग गया है।
सिंधिया के कांग्रेस से जाने के बाद कांग्रेस में अंतर्कलह ना के बराबर है, जबकि BJP में इसके बढ़ने की आशंकाएं हैं। ऐसे में राजस्थान की तरह मध्य प्रदेश में भी BJP की सारी उम्मीदें पीएम मोदी से ही होंगी।
छत्तीसगढ़ में भी तीन बार मुख्यमंत्री रहे रमन सिंह को किनारे करने के बाद BJP के समक्ष मोदी के नाम और चेहरे पर चुनाव लड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। छत्तीसगढ़ में 29 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं तो 20 अन्य सीटों पर भी उनकी संख्या अच्छी-खासी है।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की लोकलुभावन योजनाओं और टीएस सिंहदेव से उनकी सुलह के बाद कांग्रेस सबसे ज्यादा आश्वस्त छत्तीसगढ़ में ही नजर आ रही है, लेकिन अरविंद नेताम की हमार राज पार्टी, CPM और BSP के साथ मिलकर चुनावी गणित को कितना प्रभावित करेगी, यह भी देखना होगा।
119 सदस्यीय विधानसभा वाले तेलंगाना में मुख्यमंत्री KCR तीसरे कार्यकाल के लिए जनादेश मांग रहे हैं। पिछले चुनाव में 19 सीटें जीतने वाली कांग्रेस ही उन्हें कुछ चुनौती देती नजर आई थी। बाद में BJP भी सक्रिय और आक्रामक रही, लेकिन राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं के वशीभूत TRS को BRS बना चुके KCR की सत्ता से बेदखली आसान नहीं लगती।
मिजोरम की राजनीति लंबे समय तक कांग्रेस और वर्तमान सत्तारूढ़ दल मिजो नैशनल फ्रंट के बीच बंटी रही। सत्ता का अदल-बदल भी होता रहा, लेकिन तीसरे ध्रुव के रूप में उभरा जोराम पीपल्स मूवमेंट अब कांग्रेस से आगे निकलता दिख रहा है। क्या वह मुख्यमंत्री जोरामथंगा की सत्ता के लिए भी चुनौती बन पाएगा, इसका जवाब चुनाव बाद मिल जाएगा।
83 लोकसभा सीटें
विधानसभा चुनाव वाले इन पांच राज्यों से कुल मिला कर 83 लोकसभा सांसद चुने जाते हैं। ऐसे में इनके जनादेश में छिपे संकेत का राष्ट्रीय महत्व भी होगा ही, क्योंकि इनमें से 65 सीटें फिलहाल BJP के पास हैं।