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7 साल में 9 लाख भारतीय हुए परदेसी, दिल में बसता है इंडिया तो फिर नागरिकता क्यों छोड़ रहे भारतीय?

नई दिल्ली। परदेस में तिरंगा देख हम गर्व से भर जाते हैं, अपना वतन… अपनी माटी, अपनी बोली-अपनी भाषा ये चीजें विदेश में मिस करते हैं। जैसे ही प्लेन अपनी धरती को चूमता है मन भावुक हो उठता है, हम. . .

नई दिल्ली। परदेस में तिरंगा देख हम गर्व से भर जाते हैं, अपना वतन… अपनी माटी, अपनी बोली-अपनी भाषा ये चीजें विदेश में मिस करते हैं। जैसे ही प्लेन अपनी धरती को चूमता है मन भावुक हो उठता है, हम अपनी सरजमीं की माटी को माथे पर लगा लेते हैं। सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा… हम दुनिया के जिस भी कोने में हों दिल में इसकी गूंज रहती है। इतना ही नहीं, खेल के मैदान में जब तिरंगा शान से ऊपर उठता है तो हमारा सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है, रोंगटे खड़े हो जाते हैं, वो एहसास अलहदा होता है। जब हमारे भीतर इतना देशप्रेम कूट-कूटकर भरा हो तो लाखों की संख्या में भारतीयों के देश छोड़ने की खबर हैरान करती है। जी हां, यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि सरकार ने संसद में बताया है कि पिछले साल यानी 2021 में 1.63 लाख भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी। 2015 से 2021 तक सात साल का आंकड़ा देखें तो 9.24 लाख भारतीय देश छोड़कर परदेसी हो गए। वैसे, हर शख्स के लिए वजह अलग-अलग हो सकती है लेकिन इतनी बड़ी संख्या में भारतीयों के देश छोड़ने की प्रमुख वजह क्या है?
करोड़पतियों का पलायन
एक महीने पहले ही ब्रिटिश फर्म की रिपोर्ट में दावा किया गया था कि करीब 8,000 करोड़पति इस साल विदेश में शिफ्ट हो सकते हैं। अमीरों के भारत से पलायन की मुख्य वजह टैक्स से जुड़ा सख्त नियम बताया गया है। गौर करने वाली बात यह है कि ये लोग उन देशों में जाना चाहते हैं जहां का पासपोर्ट ज्यादा पावरफुल माना जाता है। इसके अलावा बेहतर लाइफस्टाइल, बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की चाह में कई भारतीय विदेश में बसना चाहते हैं। भारतीय अब ज्यादा रिस्क ले रहे हैं। ऐसे में युवा भारतीय दूसरे देशों में बिजनस और निवेश की संभावनाएं तलाश रहे हैं। ऐसे में लुलु मॉल के मालिक का जिक्र भी प्रासंगिक हो जाता है। केरल के त्रिशूर के रहने वाले यूसुफ अली ने आज से 22 साल पहले 2000 में लुलु हाइपरमार्केट की स्थापना की थी। आज वह UAE के नागरिक हैं। दुनिया के 22 देशों में उनका कारोबार है।
3 साल में 4 लाख हो गए ‘विदेशी
ऐसा नहीं है कि भारतीय हाल के वर्षों में विदेश में बसना शुरू किए हैं। यह पलायन तो दशकों से जारी है लेकिन हाल के वर्षों में जब लोगों के हाथों में पैसा आने लगा तो परदेस में बसने की चाहत बढ़ गई। सरकार ने मंगलवार को लोकसभा में बताया कि पिछले तीन साल में 3,92,643 भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी। दिलचस्प यह है कि सबसे ज्यादा भारतीयों को अमेरिका ने नागरिकता दी है। वैसे भी, अमेरिका की तड़क-भड़क लाइफस्टाइल ‘अमेरिकन ड्रीम’ का सपना ज्यादातर युवा भारतीय देखते हैं।
लोकसभा में हाजी फजलुर रहमान के प्रश्न के लिखित उत्तर के साथ गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने आंकड़े पेश किए। 2019-2021 के दौरान नागरिकता छोड़ने वाले 3.92 लाख लोगों में से 43 फीसदी से अधिक लोग अमेरिका के नागरिक बन गए।
सरकार ने बताया है कि ऑस्ट्रेलिया में पिछले तीन वर्षों में 58,391 भारतीयों, कनाडा में 64,071 भारतीयों, ब्रिटेन में 35,435 भारतीयों, जर्मनी में 6,690 भारतीयों, इटली में 12,131 भारतीयों, न्यूजीलैंड में 8,882 भारतीयों और पाकिस्तान में 48 भारतीयों को नागरिकता मिली।

एक्सपर्ट मानकर चल रहे हैं कि 2031 तक देश में करोड़पतियों की संख्या में 80 फीसदी तेजी आएगी। देश में टेक्नोलॉजी, हेल्थकेयर समेत कई सेवाओं में बूम देखा जा सकता है।

पुरानी पीढ़ी vs नई पीढ़ी
हेनली ग्लोबल सिटिजंस रिपोर्ट कहती है कि भारत में पुरानी पीढ़ी के उद्योगपति देश में ही जमे हुए हैं लेकिन आज की नई पीढ़ी के उभरते बिजनसमैन अपने कारोबार का विदेश में प्रसार करने के लिए आतुर हैं। वे देश की सीमाओं से बाहर जाने से नहीं हिचकते। ये उद्यमी ऐसे देशों में अपने पैसे का निवेश करना चाहते हैं जहां उन्हें ज्यादा से ज्यादा फायदा मिल सके। यही वजह है कि भारतीयों की पसंदीदा जगहों में अमेरिका, यूरोप के देश, दुबई और सिंगापुर हैं। भारतीय मानते हैं कि वहां का लीगल सिस्टम मजबूत है।
जैसे-जैसे भारत अमीर हो रहा है, बड़ी संख्या में नागरिक बाउंड्री के बाहर जा रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक 2017 में करीब 1.7 करोड़ भारतीय विदेश में रह रहे थे। इस तरह दुनिया में अंतरराष्ट्रीय प्रवासियों के लिए भारत सबसे बड़ा सोर्स कंट्री बन गया है। इससे भी पीछे जाकर देखें तो 1990 में 70 लाख भारतीय विदेश में रह रहे थे। उसके बाद 143 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। इस अवधि में भारत की प्रति व्यक्ति आय 522 प्रतिशत बढ़ गई, जो पहले 1,134 डॉलर हुआ करती थी, वो 7,055 डॉलर हो चुकी थी। ऐसे में ज्यादा लोग विदेश में नौकरी करने के बारे में सोचने लगे। ‘ब्रेन ड्रेन’ की चिंता भी लाजिमी है। वैसे यह भी याद रखना चाहिए कि आजादी से पहले भी लोग विदेश जाते थे। लेकिन तब उन्हें जबरन बंधुआ मजदूरी के लिए ले जाया जाता था।

विदेश में बसने की प्रमुख वजह
विदेश में अपने बच्चों के साथ रहने की चाहत भी लोगों को देश से दूर ले जा रही है। मेहुल चौकसी जैसे कुछ हाई प्रोफाइल मामले भी हैं जिसमें लोग कानूनी ऐक्शन के डर से देश से भाग रहे हैं। कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार हैं:
जलवायु और प्रदूषण की टेंशन
टैक्स समेत वित्तीय चिंता
अच्छी नौकरी की चाह
बच्चों और महिलाओं की सुरक्षा
परिवार के लिए बेहतर स्वास्थ्य सुरक्षा
बच्चों के लिए बेहतर शिक्षा की व्यवस्था
विदेश में बिजनस का विस्तार
बच्चों के पास बसने के लिए
बेहतर लाइफस्टाइल
खुश होने का भी मौका
वैसे, कई देश दोहरी नागरिकता की भी अनुमति देते हैं। न्यूजीलैंड, कनाडा, अमेरिका, रूस आदि देशों में रहने वाले लोग दो देशों की सुविधाएं पाते हैं। हालांकि भारत में दोहरी नागरिकता की छूट नहीं है। ऐसे में जिन भारतीयों को विदेश में बसना होता है उन्हें अपना भारतीय पासपोर्ट जमा कराना होता है। भारत OCI कार्ड भी देता है जिसे लेकर विदेश से भारतीय स्वदेश आ सकते हैं और उसे वीजा की जरूरत नहीं पड़ती है। विदेश जा रहे भारतीयों की थोड़ी टेंशन वाली खबर के बीच एक अच्छी जानकारी भी है, जिस पर हम गर्व कर सकते हैं। इससे यह भी पता चलता है कि पलायन के अच्छे परिणाम भी देखने को मिलते हैं। जी हां, ट्विटर से लेकर एडोबी, गूगल, पेप्सी, माइक्रोसॉफ्ट जैसी बड़ी-बड़ी अमेरिकी कंपनियों को भारतीय लीड कर रहे हैं या कर चुके हैं। कह सकते हैं भारतीयों का दमखम पूरी दुनिया देख रही है।

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