डेस्क आज 13 अक्टूबर, सोमवार के दिन अहोई अष्टमी का व्रत रखा जा रहा है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और संतान के बेहतर भविष्य और तरक्की की कामना करती हैं। अहोई अष्टमी पर शाम के समय अहोई माता की पूजा करने के बाद तारों के दर्शन करके व्रत खोला जाता है। तो आइए जानते हैं कि आपके शहर में चांद-तारे कब निकलेंगे।
संतान को तरक्की के लिए व्रत
अहोई अष्टमी का व्रत बहुत खास होता, जिसमें करवाचौथ के प्रकार ही निर्जला व्रत रखा जाता है। मान्यता है कि अहोई अष्टमी का व्रत करने से संतान को तरक्की और उत्तम भविष्य प्राप्त होता है। ऐसे में महिलाएं इस दिन विधि-विधान से अहोई माता की पूजा करती हैं और व्रत रखती हैं। अहोई अष्टमी के दिन शाम की पूजा करने के पश्चात तारों और चंद्रमा के दर्शन करने के बाद व्रत का पारण करने का विधान होता है। ऐसे में आइए विस्तार से जानते हैं कि आपके शहर में अहोई अष्टमी पर चांद और तारे कब दिखाई देंगे।
अहोई अष्टमी पर चांद कब नजर आएगा
आज सितारा उदय का समय (Star Rise Time Today)
| शहर का नाम | सितारा उदय का समय |
|---|---|
| नोएडा | शाम 6:13 बजे |
| वाराणसी | शाम 6:03 बजे |
| दिल्ली | शाम 6:24 बजे |
| अलीगढ़ | शाम 6:21 बजे |
| लखनऊ | शाम 6:10 बजे |
| कानपुर | शाम 6:13 बजे |
| गाजियाबाद | शाम 6:23 बजे |
| प्रयागराज | शाम 6:07 बजे |
| राजस्थान | शाम 6:25 बजे |
| पंजाब | शाम 6:27 बजे |
| हरियाणा | शाम 6:24 बजे |
इस दिन व्रत का पारण और चांद और तारों को देखकर किया जाता है। कुछ महिलाएं तारों के दर्शन करती हैं। वहीं, कुछ महिलाएं चांद के दर्शन करने के बाद अपना व्रत खोलती हैं। ऐसे में करवाचौथ की तरह ही अहोई अष्टमी पर महिलाओं को चांद निकलने का इंतजार रहता है। बता दें कि आज रात में चंद्रोदय रात के 12 बजकर 10 मिनट पर होगा।
अहोई अष्टमी व्रत कथा
प्राचीन समय में एक साहुकार था, जिसके सात बेटे और सात बहुएं थी। साहुकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली में ससुराल से मायके आई थी। दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं मिट्टी लाने जंगल में गई तो ननद भी उनके साथ हो ली। साहुकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने साथ बेटों से साथ रहती थी। मिट्टी काटते हुए गलती से साहूकार की बेटी की खुरपी की चोट से स्याहू का एक बच्चा मर गया। स्याहू इस पर क्रोधित होकर बोली मैं तुम्हारी कोख बाधूंगी। स्याहू के वचन सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभीयों से एक-एक कर विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें। सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं वे सात दिन बाद मर जाते हैं। सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा। पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी ।
सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और उसे स्याहु के पास ले जाती है। रास्ते थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं, अचानक साहुकार की छोटी बहू की नजर एक ओर जाती हैं, वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है। इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहु ने उसके बच्चे को मार दिया है इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है
छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है। गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है। वहां स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहु होने का अशीर्वाद देती है। स्याहु के आशीर्वाद से छोटी बहु का घर पुत्र और पुत्र वधुओं से हरा भरा हो जाता है।