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कुएं में पड़ीं हड्डियों से खुला 1857 के स्वतंत्रता संग्राम का वह खौफनाक पन्ना, जलियांवाला बाग जैसा था नरसंहार

चंडीगढ। जलियांवाला बाग नरसंहार से 61 साल पहले ठीक उसी तर्ज पर पंजाब के गांव अजनाला में भी नरसंहार हुआ था। नरसंहार में मार कर कुंए में फेंके गए 282 लोग गंगा किनारे के उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल के. . .

चंडीगढ। जलियांवाला बाग नरसंहार से 61 साल पहले ठीक उसी तर्ज पर पंजाब के गांव अजनाला में भी नरसंहार हुआ था। नरसंहार में मार कर कुंए में फेंके गए 282 लोग गंगा किनारे के उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल के थे। यह तथ्‍य बीएचयू समेत पंजाब और सीसीएमबी (हैदराबाद) के वैज्ञानिकों ने अजनाला के पुराने कुंए से निकले अवशेषों के किए गए डीएनए और आइसोटोप एनालिसिस के बाद ये जानकारी दी। इस अध्‍ययन को प्रतिष्ठित फ्रंटियर्स इन जेनेटिक्‍स पत्रिका में जगह मिली है।
पंजाब के अजनाला कस्‍बे के कुंए (कलियांवाला खोह) में मिले मानव कंकालों के अवशेष 2014 में निकले थे। इतिहासकारों का मत रहा है कि ये कंकाल भारत पाकिस्‍तान के बटवारे के दौरान दंगों में मारे गए लोगों के हैं, जबकि कई किताबों में इस बात का उल्‍लेख है कि मारे गए काले सैनिकों ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह किया था। वास्‍तविकता का पता लगाने के लिए पंजाब विश्‍वविद्यालय के एंथ्रोपोलाजिस्‍ट डॉ. जेएस सेहरावत ने बीएचयू के जीन वैज्ञानिक प्रो. ज्ञानेश्‍वर चौबे, लखनऊ के बीरबल साहनी इंस्टिट्यूट के डॉ. नीरज राय और सीसीएमबी के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर अवशेषों का डीएनए और आइसोटोप अध्‍ययन किया। आठ साल तक चले अध्‍ययन में हड्डियों, खोपड़ी और दांत के डीएन टेस्‍ट से इस बात की पुष्टि हुई है कि मरने वाले सभी उत्तर भारतीय मूल के हैं। इन्‍होंने 1857 की क्रांति से पहले ब्रिटिश सरकार के खिलाफ संग्राम छेड़ा था।
साक्ष्‍य आधारित तथ्‍य
शोध टीम के वरिष्‍ठ सदस्‍य जगमेंदर सिंह सेहरावत का कहना है कि इस शोध में 50 सैंपल डीएनए और 85 सैंपल आइसोटोप एनालिसिस के इस्‍तेमाल किए गए। डीएनए विश्‍लेषण लोगों के अनुवांशिक संबंध को समझने और आइसोटोप एनालिसिस से भोजन की आदतों पर प्रकाश डालती है। दोनों विधियों ने इस बात का समर्थन किया कि कुएं में मिले मानव कंकाल पंजाब या पाकिस्‍तान में रहने वालों के नहीं थे, बल्कि डीएनए सीक्‍वेंस यूपी, बिहार और पश्चिम बंगाल के लोगों के साथ मेल खाते हैं। शोध से मिले परिणाम इतिहास को साक्ष्‍य अधारित तरीके से स्‍थापित करने में मदद करता है। प्रमुख शोधकर्ता डॉ. नीरज राय और प्रो. ए.के.त्रिपाठी ने कहा कि यह अध्‍ययन ऐतिहासिक मिथकों की जांच में डीएनए आधारित तकनीक की उपयोगिता को दर्शाता है।
इतिहास में नया पन्‍ना जुड़ेगा
अजनाला के अवेशषों के डीएनए अध्‍ययन में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बीएचयू के प्रो. ज्ञानेश्‍वर चौबे ने बताया कि इस अध्‍ययन के निष्‍कर्ष से भारत के पहले स्‍वतंत्रता संग्राम के इतिहास में गुमनाम नायकों का प्रमुख पन्‍ना जुड़ेगा। ब्रिटिश सरकार को शहीदों के नाम बताने चाहिए, ताकि हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार उनका अंतिम संस्‍कार किया जा सके। इसके साथ ही ब्रिटिश सरकार को जघन्‍यतम अपराध के लिए भारत से माफी भी मांगनी चाहिए।

 

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