नई दिल्ली: ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय सशस्त्र बलों ने जिस तरह से पाकिस्तान को करारी चोट पहुंचाई, वो शायद ही कभी भूल सकेगा। भारतीय सेना की स्ट्राइक से पस्त पड़ोसी मुल्क ने सीजफायर की गुहार लगाई। ये कोई पहली बार नहीं था जब आतंक के गढ़ माने वाले इस पड़ोसी को भारत ने करारी शिकस्त दी। पहले भी कई मौके सामने आए जब पड़ोसी मुल्क को मुंह की खानी पड़ी। 1965 की जंग इनमें से एक महत्वपूर्ण युद्ध था, जिसमें भारत ने अपनी सैन्य शक्ति के बल पर पाकिस्तान को धूल चटा दी। भारत ने इस लड़ाई में पाकिस्तान के 73 विमानों की धज्जियां उड़ा दी थीं। यह युद्ध 6 सितंबर से 23 सितंबर तक यानी 17 दिनों तक चला।
23 सितंबर को खत्म हुई थी 1965 की जंग
आज 23 दिसंबर है, वो दिन जिसे पाकिस्तान शायद ही कभी भूल सकेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि कश्मीर मुद्दे को लेकर पड़ोसी ने 6 सितंबर 1965 को भारत पर अटैक किया था। हिंदुस्तानी सेना ने भी पाकिस्तान पर जवाबी हमले शुरू कर दिया। इस जंग में दोनों देशों की वायु सेनाओं के बीच जबरदस्त फाइट हुई। पाकिस्तानी वायु सेना के पास अमेरिका के बने आधुनिक विमान थे। वहीं, भारतीय वायुसेना के पास ब्रिटेन और सोवियत संघ के फाइटर जेट थे।
भारत के फाइटर्स ने गिराए PAK के 73 विमान
भारत के छोटे लेकिन ताकतवर Gnat जेट, पाकिस्तान के Sabre Slayer विमानों को भारी नुकसान पहुंचाने में कामयाब रहे। जंग के दौरान भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान एयरफोर्स के करीब 73 विमानों को मार गिराया। पाकिस्तान ने भारत के कई एयरपोर्ट पर हमले की कोशिश की। उन्होंने हलवारा, पठानकोट और आदमपुर जैसे हवाई अड्डों को निशाना बनाने के लिए एसएसजी कमांडो को पैराशूट से उतारा। हालांकि, उनकी नापाक चाल सफल नहीं रही, ज्यादातर कमांडो को भारतीय सुरक्षा बलों और स्थानीय लोगों ने मार दिया।
1965 में कैसे मुंह की खाया था पाकिस्तान
इस जंग में भारत ने पाकिस्तान के 1840 से 1920 वर्ग किलोमीटर इलाके पर कब्जा कर लिया। इसमें सियालकोट और लाहौर के आसपास के उपजाऊ इलाके और कश्मीर के कुछ हिस्से शामिल थे। हाजी पीर दर्रे जैसी महत्वपूर्ण जगहें भी भारत के कब्जे में आ गईं। यह युद्ध पाकिस्तान के ‘ऑपरेशन जिब्राल्टर’ की वजह से शुरू हुई थी।
हार से घबराया पाकिस्तान समझौते के लिए हुआ मजबूर
पाकिस्तान कश्मीर में घुसपैठ करके कश्मीर में विद्रोह कराना चाहता था। हालांकि, उसका प्लान सफल होने से पहले ही साजिश का पता भारत को चल गया। भारत ने जवाबी सैन्य कार्रवाई की। जनवरी 1966 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने ताशकंद घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते का मकसद जंग से पहले की स्थिति को बहाल करना था।
ऐसे दो फाड़ हुआ था पाकिस्तान
जंग के दौरान भारत ने जो इलाके जीते थे, उन्हें वापस कर दिया गया। हालांकि, 1965 की जंग से ही 1971 के युद्ध की भूमिका बनी। इस जंग में हार के बाद पाकिस्तान में असंतोष बढ़ गया। खासकर पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में लोगों को लगा कि उनकी अनदेखी की जा रही है। यही गुस्सा 1971 के बांग्लादेश मुक्ति जंग का कारण बना। इस तरह 1965 की जंग ने पाकिस्तान के टूटने की नींव रख दी।