जयपुर। आदमखोर का कलंक झेलकर करीब 7 वर्ष से अपने घर यानी जंगल से बेघर हो एक बाड़े में जिंदगी काट रहे टी 24 यानी उस्ताद की रिहाई को लेकर वन्यजीव प्रेमियों में एक बार फिर मांग उठने लगी है। एनटीसीए से लेकर सीज़ेडए तक की नॉर्म्स को ताक पर रखकर उस्ताद को 16 मई 2015 को लॉकडाउन कर दिया गया था। उस्ताद पर चार लोगों की हत्या का अरोप लगाया गया यह बात अलग है कि आज तक इनमें से एक भी घटना की पुष्टी नहीं हो सकी। 7 वर्ष से अपनी बेगुनाही की जंग उस्ताद लड़ रहा है।
रणथंभौर के जंगल में राज करने वाले ‘उस्ताद’ यानी बाघ टी 24 को 16 मई यानी आज लॉक डाउन में 7 वर्ष हो गए। इंसान पर हमले के आरोप में उस्ताद को एक ऐसी सजा सुनाई गई जिससे उसकी जंगल की दहाड़ पिंजरे की दर्दनाक जिंदगी में बदल गई। उस्ताद आज पिंजरे में अपनी जिंदगी गुजार रहा है लेकिन सवाल उठता है कि बाघ के घर में घुसने वाले इंसान पर अगर बाघ ने हमला किया तो दोषी बाघ कैसे हुआ ? और क्या इस तरह की घटनाओं के बाद जंगल के राजा को इस तरह कैद करना उचित है? रणथंभौर के लाहपुर क्षेत्र में वर्ष 2006 में जन्में बाघ टी 24 यानी उस्ताद के दो भाई टी 23 और टी 25 भी हैं। उस्ताद की दादी मशहूर बाघिन ‘मछली’ थी जिस पर दुनियाभर में कई डॉक्यूमेंटरी बनी। उस्ताद की मेटिंग पार्टनर नूर नाम की बाघिन है जिससे दो बार में तीन शावक हुए। उस्ताद को उसकी ताकत और मिजाज के लिए जाना जाता है। बहरहाल रणथंभौर से उस्ताद के नाम से मशहूर T24 बाघ उस्ताद को वन रक्षक रामलाल सैनी पर हमला कर मौत के घाट उतारने के कथित आरोप में 16 मई 2015 को उदयपुर स्तिथ सज्जनगढ़ बायोलॉजिकल पार्क लाया गया था। इसके बाद ये बीच में कई बार बीमार पड़ा लेकिन उपचार के बाद स्वस्थ हो गया। कतिथ तौर पर चार व्यक्तियों की टाइगर द्वारा मौत के बाद होटल लॉबी के दबाव में टी.24 को उदयपुर स्तिथ बायोलॉजिकल पार्क शिफ्ट किया गया था। यह काम एक सीक्रेट मिशन की तरह किया गया था उस समय उदयपुर वाइल्डलाइफ के डी.एफ.ओ. टी मोहन राज थे। उस्ताद को जब मध्य रात्रि उदयपुर लाया गया तो पत्रकारों का जमावड़ा सज्जनगढ़ बायो पार्क के मैन गेट पर था लेकिन वन विभाग वाले पत्रकारों को गच्चा दे कर उसे सज्जनगढ़ के रामपुरा वाले गेट से अंदर ले गए।
उस्ताद पर चार हत्याओं का अरोप
मीडिया के प्रेशर के बाद लगातार उस्ताद की सेहत की खबरें आने लगीं, लेकिन वन्यजीव प्रेमियों में उस्ताद को कैद किए जाने का रोष था. उस्ताद के लिए मानो पूरे भारतवर्ष के वन्यजीव प्रेमी एक हो गए थे। बीच में कई बार उस्ताद के गंभीर रूप से बीमार होने की भी खबरें आईं लेकिन किसी को भी उसकी वास्तविक हालात देखने के लिए अनुमति नहीं दी गयी। स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड के सदस्य धीरंद्र गोधा और सिमरत संधू का कहना है कि उस्ताद पर चार हत्याओं का अरोप लगाया गया। इनमें से एक भी साबित नही हुई। एनटीसीए और सीजेडए ने भी उस्ताद को लॉकडाउन करने को गलत माना है। इसलिए बेहतर होगा कि उस्ताद को वापस जंगल में छोड़ा जाए।निवर्तमान वन मंत्री राजकुमार रिणवा उदयपुर उस्ताद को देखने भी गए थे लेकिन उस्ताद की रिहाई की बात जब पत्रकारों द्वारा पूछे जाने पर इसे सिरे से टाल गए। अब उस्ताद को कैद में लगभग 7 वर्ष भी गए हैं। साथ ही उसका व्यवहार भी बदल गया है, नॉन डिस्प्ले एरिया में उस्ताद जहां पहले किसी को देखते ही भड़क उठता था अब होल्डिंग एरिया में किसी पार्क कर्मी को देखकर छिपने की कोशिश करता है। डाइजेशन की समस्या होने की वजह से खाने में इसे फिलहाल कीमा ही दिया जा रहा है। उस्ताद की तरह ही टी 104 भी फ़िलहाल कैद में है। सवाल उठता है कि वन्यजीवों को लेकर काम कर रही बड़ी-बड़ी संस्थाएं, वन विभाग और मंत्रालय आज तक ऐसे ही कोई नीति तैयार नहीं कर पाया जिसमें बाघ और इंसान के आपसी संघर्ष की सजा किसको मिले यह तय हो पाए।
उस्ताद के खिलाफ कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं
बाघों के रहवास में यानी उनके प्राकृतिक आवास में इंसानी दखल बढ़ता जा रहा है। ऐसे में उस्ताद या किसी अन्य बाघ ने इंसान पर हमला किया तो उसे किस नीति के तहत एक छोटे से पिंजरे में आजीवन कैद कर दिया जाता है। इस विषय पर पहले भी बहस होती रही हैं लेकिन आज तक कोई स्पष्ट नीति नहीं बन पाई। गुजरात में जहां मानव की स्वयं की गलती से जब इंसान शेरों द्वारा मार दिया जाता है तो कुछ समय कैद में रखने के बाद उसे दोबारा छोड़ दिया जाता है देखना ये होगा कि राजस्थान में बाघों के पुनर्वास के लिए किस प्रकार के कदम उठाए जाते हैं। इस मामले में सरिस्का टाइगर फाउंडेशन के दिनेश दुर्रानी और स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड के सदस्य सुनील मेहता कहते हैं कि उस्ताद को उस अपराध की सजा दी गई जो उसने किया ही नहीं। इसलिए बेहतर होगा उसताद को जल्द रहलीज किया जाए। दरअसल टी 24 यानी उस्ताद पर चार इंसानों के कत्ल का अरोप है।चारों घटनाएं कोर क्षेत्र की हैं और चारों में उस्ताद को महज शक यानी उसकी आक्रमकता के आधार पर आरोपी गनाया गया। जबकि हकीकत में चारों घटनाओं में उस्ताद के होने के कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं हैं। ऐसे में बेहतर होगा सरकार उस्ताद को अपने घर यानी जंगल में जितना जल्दी हो छोड़ दे।
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