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क्या गोरखालैंड आंदोलन फिर पकड़ेगा जोर ? अब हाम्रो पार्टी ने उठाई मांग

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दार्जिलिंग। मशहूर पर्वतीय पर्यटन केंद्र पहाड़ियों की रानी दार्जिलिंग अपनी खूबसूरती और प्राकृतक सौंदर्य के लिए तो पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है ही, लेकिन पिछले कुछ दशकों में दार्जीलिंग पहाड़ की राजनीति भी खूब सुर्ख़ियों में रही है। एक बार फिर से दार्जीलिंग पहाड़ की राजनीति सरगर्म होती जा रही है और गोरखालैंड की मांग जोर पकड़ती जा रही है। वर्तमान में चल रही गतिविधियों से पहले आईये हम आपको गोरखालैंड आंदोलन के संक्षिप इतिहास के बारे में बता दें।
सबसे पहले दार्जीलिंग पहाड़ 1986 में गोरखालैंड के आंदोलन के कारण सुर्ख़ियों में आया था, जब गोर्खा राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा के द्वारा एक हिंसक आंदोलन की शुरुआत हुई थी, जिसका नेतृत्व सुभाष घीसिंग ने किया था। 28 महीने के उस हिंसक आंदोलन में लगभग 1200 लोग मारे गए तथा 10 हजार से ज्यादा घर जला दिए गए। अंत में 1988 में सुभाष घीसिंग के साथ समझौता हुआ एवं गोरखा नेशनल हिल काउंसिल यानी गोरखा राष्ट्रीय पर्वतीय परिषद का गठन हुआ।
कुछ वर्षों तक शांत रहने के बाद 2007 में फिर से एक नई पार्टी गोरखा जन मुक्ति मोर्चा का उदय हुआ और फिर से गोरखालैंड को लेकर आंदोलन शुरू हुआ, गोजमुमो प्रमुख विमल गुरुंग ने इस आंदोलन की कमान संभाली। उनके नेतृत्व में जोरदार आंदोलन होने लगा और कई बार हिंसात्मक आन्दोलन भी हुआ। इस बीच बंगाल में सत्ता परिवर्तन हुआ और पश्चिम बंगाल की बागडोर ममता बनर्जी के हाथ में आ गयी। उन्होंने पहाड़ पर शांति लाने का प्रयास किया। इसके बाद फिर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम और गोरखा जन मुक्ति मोर्चा गोजमुमो के प्रमुख विमल गुरुंग के बीच सिलीगुड़ी से सटे सुकना स्थित पिंटेल गांव में 18 जुलाई 2011 को हुए त्रिपक्षीय समझौते के तहत गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन (जीटीए) अस्तित्व में आया। इसके तहत दार्जिलिंग पहाड़ को कई विशेष अधिकार दिए गए है। अभी भी जीटीए दार्जिलिंग पहाड़ पर लागू है। लेकिन इस बीच गोरखालैंड के लिए आंदोलन भी जारी रहा और गोरखालैंड की मांग को लेकर कई नई राजनीतिक पार्टियों का भी उदय हुआ। पहाड़ी रास्तों की तरह यहां के राजनीतिक समीकरण टेढ़े-मेढ़े या कहें तो उलझती रही। कभी मुख्यमंत्री ममता का गुणगान करने वाले विमल गुरुंग ने उनसे दुश्मनी कर ली और उनके जगह विनय तमांग आ गया। दोनों एक समय एक दूसरे के दुश्मन बन बैठे थे, लेकिन अब फिर से एक साथ नज़र आ गए है। आपको बता दें कि नगरपालिका चुनावों में नई राजनीतिक पार्टी हाम्रो पार्टी ने भारी अंतर से नगरपालिका चुनाव जीता और दार्जिलिंग नगरपालिका पर कब्जा कर लिया है। अब पहाड़ों की रानी दार्जिलिंग पर एक नया राजनीतिक दल अपने आगाज के रास्ते पर है। बीजीएसपी नाम का एक नया राजनीतिक दल पहाड़ियों में पदार्पण करने वाला है। पार्टी की शुरुआत से पहले दार्जिलिंग में उनकी मांगों को लेकर पोस्टर भी लगाये गये हैं। नए राजनीतिक दल के गठन के साथ ही गोरखालैंड की मांग को लेकर एक बार फिर से पहाड़ पर राजनीति सरगर्म हो रही है , देखने वाली बात होगी दार्जीलिंग पहाड़ की राजनीति किस करवट बैठती है और पहाड़ पर क्या नए राजनितिक समीकरण बनाते और बिगड़ते है।


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