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नॉर्थ-ईस्ट के रास्ते दिल्ली की राह आसान करने की तैयारी में ममता बनर्जी, जानिए क्या है रणनीति?

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कोलकता। नॉर्थ-ईस्ट के तीन राज्य त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड में चुनावी तारीखों की घोषणा के बाद ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने सक्रियता बढ़ा दी है। तृणमूल कांग्रेस ने त्रिपुरा और मेघालय की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। दोनों राज्यों की कमान ममता के भतीजे और पार्टी महासचिव अभिषेक बनर्जी ने संभाल ली है।
सूत्रों के मुताबिक फरवरी के मध्य में ममता बनर्जी खुद इन राज्यों में जाकर चुनावी कैंपेन करेंगी। इससे तय माना जा रहा है कि तृणमूल ने इन दोनों राज्यों के चुनाव में पूरी ताकत झोंक दी है। बंगाल चुनाव 2021 में बंपर जीत के बाद ही ममता ने अन्य राज्यों में भी चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी थी। समर्थकों ने इसके बाद फिर से ‘हवाई चोटी दिल्ली जावे’ (हवाई चप्पल दिल्ली जाएगा) का नारा लगाना शुरू कर दिया था।
दिल्ली की दावेदारी क्यों, 3 वजहें…
1. विपक्ष में चेहरे को लेकर कन्फ्यूजन- लोकसभा चुनाव 2024 में विपक्ष की ओर से पीएम का चेहरा कौन होगा? इसको लेकर अब तक कन्फ्यूजन की स्थिति है, जबकि चुनाव में सिर्फ 395 दिन बाकी हैं
भारत जोड़ो यात्रा से उत्साहित कांग्रेसी राहुल गांधी को पीएम का चेहरा बता रहे हैं। राहुल गांधी के अलावा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री शरद पवार भी विपक्ष में पीएम चेहरे के लिए बड़े दावेदार हैं। यानी अब तक विपक्ष पार्टियों में किसी एक चेहरे पर सहमति नहीं बन पाई है। ऐसे में ममता बनर्जी भी अपनी दावेदारी मजबूत करने की कोशिश में हैं।
2. पीएम मोदी और बीजेपी से सीधे मुकाबले की छवि- बंगाल चुनाव 2021 में ममता ने अकेले दम पर पीएम मोदी और बीजेपी के पूरे चुनावी मशीनरी से मुकाबला किया था। बंगाल के इस कांटे के टक्कर वाले मुकाबले में ममता ने बीजेपी को बड़ी मात दी थी। बंगाल में 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को अप्रत्याशित जीत मिली थी। बंगाल चुनाव के बाद ममता की छवि पीएम मोदी और बीजेपी से सीधी लड़ाई वाली बन गई। इसके बाद कई मौकों पर बीजेपी और तृणमूल के बीच बंगाल में टकराव भी देखने को मिला।
3. केंद्र और राज्य की राजनीतिक का भी अनुभव- ममता बनर्जी पिछले 12 साल से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री हैं। 1998 में उन्होंने तृणमूल कांग्रेस की स्थापना की थी, उस वक्त से अपनी पार्टी चला रही हैं। ममता बनर्जी केंद्र में नरसिम्हा राव, अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह की सरकार में मंत्री रह चुकी हैं। ममता लोकसभा में 25 साल सांसद रह चुकी हैं। लोकसभा के अपने पहले चुनाव 1984 में ममता ने दिग्गज नेता सोमनाथ चटर्जी को हराया था।
अमर्त्य सेन के बयान से ममता को मिला बल
हाल ही में एक इंटरव्यू में प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री पद के लिए बेहतर दावेदार बताया था। सेन ने कहा था कि ममता बनर्जी में प्रधानमंत्री बनने की क्षमता है और मोदी सरकार के खिलाफ जनता की निराशा को ताकत बना सकती हैं। सेन के इस बयान से राष्ट्रीय राजनीति से अलग-थलग पड़ी ममता को एक बल मिला है। सेन के इंटरव्यू के बाद ममता ने तुरंत बयान भी दिया और यहां तक कह दिया कि सेन का सलाह उनके लिए आदेश जैसा है।
अब 3 प्वॉइंट्स में जानिए ममता बनर्जी की रणनीति
1. बंगाल का किला मजबूत करने में जुटी
2019 के चुनाव में 42 सीटों वाली पश्चिम बंगाल में बीजेपी 18 सीटों पर जीत दर्ज कर ली। ममता की पार्टी के लिए यह सेटबैक जैसा था।2024 की लड़ाई से पहले ममता बंगाल के किले को मजबूत करने में जुटी है।
इसके लिए पार्टी ने 2 स्तर पर रणनीति बनाई है. 1. जनसंपर्क 2. सोशल मीडिया.
ममता बनर्जी बंगाल में सबसे कमजोर किला नॉर्थ बंगाल में जनसंपर्क की कमान खुद संभाल ली है। पिछले एक साल में बनर्जी करीब 5 से ज्यादा नॉर्थ बंगाल का दौरा कर चुकी हैं। बंगाल में पहली बार तृणमूल कांग्रेस ने आईटी और सोशल मीडिया सेल का गठन किया है। इसकी कमान तेजतर्रार युवा नेता देबांशु भट्टाचार्य को सौंपी गई है।
2. नॉर्थ- ईस्ट में मजबूत उपस्थिति- तृणमल कांग्रेस बंगाल की 42, असम की 3, त्रिपुरा की 2, गोवा की 2 और मेघालय की एक लोकसभा सीट पर फोकस कर रही है। ममता इन 5 राज्यों में मजबूत उपस्थिति दर्ज कर तृणमूल को राष्ट्रीय पार्टी बनाने की कोशिश में है। नॉर्थ ईस्ट की नेशनल पीपुल्स पार्टी पहले से राष्ट्रीय पार्टी है। ममता की कोशिश है कि इन राज्यों में जनाधार बढ़ाकर एक से अधिक राज्यों में तृणमूल कांग्रेस को ले जाएं, जिससे दिल्ली की राह आसान हो। इसलिए तृणमूल कांग्रेस ने नॉर्थ-ईस्ट के चुनाव में पूरी ताकत झोंक दी है।
3. अखिलेश और हेमंत से समर्थन की उम्मीद- दिल्ली की राह आसान करने के लिए ममता को यूपी में अखिलेश यादव और झारखंड में हेमंत सोरेन से समर्थन मिलने की उम्मीद है। अखिलेश यादव ममता को पीएम का चेहरा बता भी चुके हैं, जबकि हेमंत तृणमूल कांग्रेस के प्रत्याशियों के पक्ष में बंगाल में जनसभा कर चुके हैं। यूपी में लोकसभा की 80 और झारखंड में 14 सीटे हैं। ऐसे में अगर दोनों की पार्टी का सपोर्ट मिलता है तो अन्य विपक्षी नेताओं के मुकाबले ममता की राह आसान हो सकती है।
स्ट्रैटजी सही, लेकिन फिर भी दिल्ली दूर
ममता बनर्जी दिल्ली की राह आसान करने के लिए लगातार रणनीति बदल रही हैं। क्षेत्रीय दलों के नेताओं सहित कांग्रेस के संपर्क में लगातार बनी हुई हैं. इसके बावजूद ममता के लिए दिल्ली दूर है। राजनीति हिंसा की वजह से कई दल विरोध में- बंगाल में राजनीतिक हिंसा की वजह से सीपीएम समेत कई वामपंथी पार्टियां ममता के विरोध में है। सीपीएम राष्ट्रीय पार्टी है, जिस वजह से दिल्ली के लिए ममता का दावा कमजोर भी पड़ सकता है। अणुव्रत मंडल और पार्थ चटर्जी जैसे दिग्गज नेता जेल में- 2021 के चुनावी जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पार्थ चटर्जी और अणुव्रत मंडल जैसे नेता जेल में हैं. पार्थ शिक्षा भर्ती घोटाले और अणुव्रत पशु तस्करी मामले में सलाखों के पीछे बंद हैं। दोनों नेताओं का करीब पश्चिम बंगाल के 5 लोकसभा सीटों पर सीधा असर रहा है। इसके अलावा दोनों नेता तृणमूल कांग्रेस का फंड मैनेजमेंट भी देखते थे।


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