फ्लोरिडा। भारत के चंद्रयान 3 पर दुनियाभर की नजरें लगी हैं। चांद के साउथ पोल पर चंद्रयान लैंडिंग के लिए तैयार है। इस मिशन के साथ ही 54 साल पहले अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का अपोलो 11 भी याद आने लगा है। 20 जुलाई 1969 को नासा ने अपोलो 11 को चांद पर उतारा था। अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रॉन्ग इस मिशन के कमांडर थे। उनके साथ बज आल्ड्रिन भी चांद पर गए थे। दोनों जब चांद पर उतरे थे तो उन्होंने एक ऐसी डिवाइस वहां पर फिट की थी जो आज तक काम कर रही है। जानिए इसके बारे में सबकुछ।
क्या है यह डिवाइस
जो डिवाइस नील आर्मस्ट्रॉन्ग और आल्ड्रिन ने फिट की थी उसे ‘रेट्रोरिफ्लेक्टर’ के तौर पर जाना जाता है। यह एक लेजर रेंजिंग रेट्रोरिफ्लेक्टर (LRRR) है। यह रेट्रोरिफ्लेक्टर, ऐरे को पृथ्वी की तरफ लक्ष्य रखने के मकसद से वहां पर फिट किया गया था। इसे फ्यूज्ड सिलिका के क्यूब्स से बनाया गया था। पृथ्वी से चंद्रमा पर भेजी गई लेजर-रेंजिंग किरणें को इस एलआरआर द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। इससे वैज्ञानिकों को चांद और धरती के बीच की दूरी की सटीक माप करने में मदद मिलती है। दोनों के बीच की दूरी की गणना धरती पर लौटने वाली रोशनी बहुत छोटी पल्स के लिए जरूरी समय को मापकर की जाती है।
क्या है इसका काम
जर्नल साइंस के एक आर्टिकल के मुताबिक यह माप इतना सटीक हो सकता है कि वास्तविक आंकड़े से अधिकतम अंतर करीब छह इंच तक हो सकता है। मार्च 1970 में आए साइंटिफिक अमेरिकन के इश्यू में जेम्स फॉलर और जोसेफ वाम्लर ने लिखा था कि महत्वपूर्ण है कि किसी विशेष क्षण में पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की पूर्ण दूरी नहीं है, बल्कि महीनों और वर्षों की अवधि में छह इंच या उससे बेहतर सटीकता के साथ मापी गई दूरी का अलग होना है। कई महत्वपूर्ण सवालों के जवाब देने के लिए इस तरह की विविधताओं का अध्ययन किया जा सकता है। ‘ फॉलर को एलआरआरआर के आइडिया का क्रेडिट दिया जाता है।
जब खो गई डिवाइस
एलआरआरआर को चंद्रमा पर रखा गया था। जबकि चार और रेट्रोरिफ्लेक्टर भी पृथ्वी पर रखे गए थे। इनमें से तीन अमेरिका के अपोलो मिशन ने रखे थे जबकि बाकी सोवियत संघ के लूना मिशन ने स्थापित किए थे। सोवियत संघ के लूनोखोद1 यानी लूना-1 ने पहला रेट्रोरिफ्लेक्टर रखा था। स्पेस.कॉम के मुताबिक 17 नवंबर, 1970 को चंद्रमा पर रखा गया सोवियत संघ का रेट्रोरिफ्लेक्टर खो गया है। 14 सितंबर, 1971 के बाद से इसके बारे में नहीं सुना गया था। लेकिन साल 2010 में खगोल भौतिकीविदों ने इसे फिर से तलाश लिया था। साथ ही बाकी सभी रेट्रोरिफ्लेक्टर, अभी भी चालू हैं।
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