नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को सीजेआइ के नेतृत्व वाली संविधान पीठ ने चुनावी बॉन्ड योजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की। इस दौरान सीजेआइ ने कहा कि जांच एजेंसियों के जरिए सतारूढ़ पार्टी चंदा दाताओं का पता लगा सकती है, जबकि विपक्षी पार्टियों के लिए यह सुविधा नहीं है।
चुनावी बॉन्ड योजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दूसरे दिन बुधवार को CJI डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं कि इस योजना के पीछे की सोच सराहनीय है, लेकिन योजना पूरी तरह गोपनीय नहीं है। यह सीमित गुमनामी और गोपनीयता रखती है। यह एसबीआइ और कानून प्रवर्तन एजेंसी के लिए गोपनीय नहीं है। उन्होंने कहा कि इसलिए बड़े दानदाता कभी चुनावी बॉन्ड खरीदने का जोखिम नहीं उठाएंगे। वे इससे दूर ही रहेंगे।
इस मामले की सुनवाई सीजेआइ चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की संविधान पीठ कर रही है। याचिकाओं में चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक बताते हुए रद्द करने की मांग की गई है। सीजेआइ ने कहा कि जांच एजेंसियों के जरिए सतारूढ़ पार्टी चंदा दाताओं का पता लगा सकती है, जबकि विपक्षी पार्टियों के लिए यह सुविधा नहीं है। बड़े चंदा दाता अपने आधिकारिक चैनल्स से छोटी रकम के बॉन्ड्स खरीदते हैं। वे अपनी गर्दन इसमें नहीं फंसाते। हालांकि इस स्कीम का मकसद नकदी लेन-देन कम करना, सभी के लिए समान अवसर मुहैया कराना और काले धन का इस्तेमाल खत्म करना है। इससे हमें कोई ऐतराज नहीं है। क्या उसका अनुपातिक और सटीक इस्तेमाल हो रहा है? यही बहस का मुद्दा है। जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा, सीमित गोपनीयता के कारण विपक्षी दल को यह नहीं पता होगा कि दानदाता कौन हैं, लेकिन उन्हें चंदा देने वालों का पता कम से कम जांच एजेंसियां तो लगा ही सकती हैं।
एसजी बोले, राजनीति में काले धन का इस्तेमाल हर देश की समस्या
एसजी तुषार मेहता ने कहा कि चेक से देने पर खुलासा हो जाएगा कि किस पार्टी को कितना पैसा दिया गया। इससे अन्य पार्टियां नाराज हो सकती हैं। ऐसे में कंपनियां चंदा नकद दे देती हैं। सब खुश रहते हैं। सैकड़ों करोड़ रुपए नकद चंदा दे दिया जाता है। इस पर जस्टिस बी.आर. गवई ने पूछा, फिर चंदा दाता को आयकर में छूट कैसे मिलती है? एसजी मेहता ने कहा कि आम तौर पर राजनीति में काले धन के इस्तेमाल को लेकर हर देश जूझ रहा है। हर देश परिस्थितियों के आधार पर इस समस्या से निपट रहा है। भारत भी समस्या से जूझ रहा है। सभी सरकारों ने अपने कार्यकाल में चुनावी प्रक्रिया से काले धन को दूर रखने का सिस्टम बनाया। धन बैंकिंग सिस्टम के जरिए ही चुनावी चंदे के रूप में आए, इसकी व्यवस्था की, ताकि अज्ञात स्रोत वाला धन चुनावी या राजनीतिक चंदे में न आए। कई कदम समय-समय पर उठाए गए। इनमें चुनावी बॉन्ड भी है।
हस्तक्षेप आवेदन पर विचार से इनकार
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दलित पैंथर्स पार्टी की ओर से दायर हस्तक्षेप आवेदन पर विचार करने से इनकार कर दिया। इसमें चुनाव बॉन्ड स्कीम को भेदभावपूर्ण बताते हुए कम वोट शेयर वाले दलों को बॉन्ड स्वीकार करने की अनुमति नहीं देने को चुनौती दी गई थी। संविधान पीठ ने कहा, इस मामले में आवेदक अलग रिट याचिका दायर करे। हम चुनावी बॉन्ड के दूसरे मुद्दों पर विचार कर रहे हैं। बॉन्ड से छोटे दलों को बाहर करने की शिकायत अलग मुद्दा है। दलित पैंथर्स पर्टी के वकील ने पीठ को बताया कि इस योजना का उन राजनीतिक दलों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जो दलितों और समाज के अन्य वंचित वर्गों के अधिकारों की वकालत करते हैं।
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