नई दिल्ल। ऐतिहासिक राजपथ का नाम अब कर्तव्य पथ हो गया है। पहले उसका नाम किंग्सवे था यानी राजा का पथ। हुक्मरानों का पथ। 1911 में लगे ऐतिहासिक ‘दिल्ली दरबार’ के बाद ब्रिटेन के राजा जॉर्ज पंचम के सम्मान में इस सड़क को किंग्सवे नाम दिया गया था। आजादी के बाद उसका महज हिंदी अनुवाद करके नया नाम ‘राजपथ’ दिया गया। लेकिन अब कर्तव्यपथ नाम के पीछे सरकार की दलील है कि यह औपनिवेशिक गुलामी के प्रतीक से मुक्ति है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से देशवासियों को जो ‘पंच प्रण’ लिए थे उनमें से एक ‘गुलामी की हर सोच से मुक्ति’ का भी संकल्प था। पीएम ने ‘विकसित भारत, गुलामी की हर सोच से मुक्ति, विरासत पर गर्व, एकता और नागरिकों की तरफ से अपने कर्तव्यों के पालन’ के पंच प्रण का ऐलान किया था। ‘कर्तव्य पथ’ के नामकरण को लेकर उसी प्रण की छाप दिख रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार शाम को कर्तव्य पथ का उद्घाटन करेंगे। इस दौरान केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी और जी. किशन रेड्डी भी मौजूद रहेंगे। राजपथ और सेंट्रल विस्टा लॉन को अब कर्तव्य पथ के नाम से जाना जाएगा। उद्घाटन के बाद यह आम लोगों के लिए भी खुल जाएगा। यही नहीं, पीएम मोदी इंडिया गेट के ग्रैंड कैनोपी में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की ग्रेनाइट से बनी 28 फीट ऊंची भव्य प्रतिमा का भी लोकार्पण करेंगे। पहले यहां ब्रिटेन के किंग जॉर्ज पंचम की प्रतिमा लगी हुई थी जिसे 1968 में हटाया गया था। इसी साल 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयंती के मौके पर ग्रैंड कैनोपी में उनकी होलोग्राम स्टैच्यू लगाई गई थी। आखिर महान बलिदानी और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नेताजी के सम्मान से बड़ा ‘विरासत पर गर्व’ कुछ दूसरा क्या होगा।
वैसे नरेंद्र मोदी सरकार पिछले 8 सालों में गुलामी के प्रतीकों से मुक्ति के कई कदम उठाए हैं। लाल किले की प्रचार से पीएम के ऐलान के बाद सरकार इस दिशा में और तेजी से आगे बढ़ेगी। आइए नजर डालते हैं कि कब-कब मोदी सरकार ने औपनिवेशिक गुलामी के प्रतीकों को खत्म किया।
इंडियन नेवी का नया ध्वज
इसी महीने 2 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंडियन नेवी के ध्वज से गुलामी के प्रतीक को हटाया। नेवी के ध्वज में औपनिवेशिक अतीत की छाप दिखती थी। नए ध्वज में लाल रंग के सेंट जॉर्ज क्रॉस को हटा दिया गया। उसकी जगह पर छत्रपति शिवाजी महाराज की शाही मुहर से प्रेरित चिह्न लगाया गया है। ऊपर बाईं ओर तिरंगा बना है। दाहिनी ओर नीले रंग की पृष्ठभूमि वाले एक अष्टकोण में सुनहरे रंग का राष्ट्रीय प्रतीक अशोक चिह्न बना है। सबसे नीचे संस्कृत में ‘शं नो वरुण:’ लिखा है जिसका अर्थ है ‘जल के देवता वरुण हमारे लिए शुभ हों।’ इंडियन नेवी का नया ध्वज गुलामी के प्रतीक से मुक्ति और विरासत पर गर्व का एक शानदार उदाहरण है।
रेस कोर्स रोड का नाम बदलकर लोक कल्याण मार्ग करना
मोदी सरकार ने 2016 में ही रेस कोर्स रोड का नाम लोक कल्याण मार्ग कर दिया था। इसके साथ ही प्रधानमंत्री आवास का पता 7, रेस कोर्स मार्ग से बदलकर 7, लोक कल्याण मार्ग हो गया। रेस कोर्स नाम अंग्रेजों का दिया था।
औपनिवेशिक काल के पुराने कानूनों से मुक्ति
2014 में सत्ता में आने के बाद से मोदी सरकार 1500 से भी ज्यादा पुराने कानूनों को खत्म कर दिया है। अंग्रेजों के जमाने के ये कानून अप्रासंगिक हो चुके थे लेकिन उन्हें ढोया जा रहा था। इनमें से कई कानून तो ब्रिटिश राज में भारतीयों के शोषण के औजार थे।
आम बजट में रेलवे बजट का विलय
2017 में सरकार ने 92 साल पुरानी परंपरा को तोड़ते हुए रेल बजट का आम बजट में विलय कर दिया। इसके अलावा बजट पेश करने की तारीख में भी बदलाव किया गया। औपनिवेशिक काल से ही बजट फरवरी महीने के आखिरी दिन पेश किया जाता था। अब पहली फरवरी को पेश किया जाता है। ये बदलाव छोटे जरूर दिख सकते हैं लेकिन हैं अहम। गुलामी के प्रतीकों से मुक्ति का बदलाव प्रतीकात्मक ही सही लेकिन बहुत महत्वपूर्ण हैं।
इंडिया गेट के ग्रैंड कैनोपी में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिमा
इस साल 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयंती के मौके पर इंडिया गेट की ग्रैंड कैनोपी में नेताजी की होलोग्राम प्रतिमा का उद्घाटन हुआ। अब उसकी जगह पर ग्रेनाइट से बनी 28 फीट ऊंची नेताजी की भव्य प्रतिमा है। किसी जमाने में इस कैनोपी में जॉर्ज पंचम की प्रतिमा लगी थी जिसे आजादी के 21 साल बाद 1968 में हटाया गया।
बीटिंग रीट्रीट सेरिमनी से ‘अबाइड विद मी’ की छुट्टी
इसी साल गणतंत्र दिवस समारोह के बाद होने वाले बीटिंद द रीट्रीट सेरिमनी से चर्चित क्रिश्चियन प्रेयर गीत ‘अबाइड विद मी’ को हटा दिया गया। उसकी जगह पर कवि प्रदीप के मशहूर गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ को शामिल किया गया। 2015 में भी बीटिंग रीट्रीट समारोह में कुछ बड़े बदलाव किए गए थे। भारतीय वाद्ययंत्रों सितार, संतूर और तबला को पहली बार इसमें शामिल किया गया।
अमर जवान ज्योति का नैशनल वॉर मेमोरियल में विलय
इसी साल जनवरी में अमर जवान ज्योति की लौ का नैशनल वॉर मेमोरियल में विलय कर दिया गया।
सड़कों के बदले गए नाम
2015 में दिल्ली स्थित औरंगजेब रोड का नाम बदल दिया गया। सबसे क्रूर मुगल शासक के नाम की जगह इस रोड का नाम महान वैज्ञानिक और पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर कर दिया गया। 2017 में डलहौजी रोड का नाम बदलकर दारा शिकोह रोड कर दिया गया। 2018 में तीन मूर्ति चौक का नाम तीन मूर्ति हाइफा चौक कर दिया गया।
अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के द्वीपों का नाम बदला
दिसंबर 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की भावनाओं के अनुरूप अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के तीन द्वीपों के नाम बदल दिए। नेताजी ने तो 1943 में पूरे अंडमान और निकोबार द्वीप का नाम बदलकर शहीद और स्वराज द्वीप करने का सुझाव दिया था। मोदी सरकार ने रॉस आइलैंड का नाम नेताजी सुभाष चन्द्र बोस द्वीप कर दिया। नील आइलैंड को शहीद द्वीप और हैवलॉक आइलैंड को स्वराज द्वीप का नाम मिला।
विक्टोरिया मेमोरियल हॉल में बिप्लोबी भारत गैलरी का उद्घाटन
इस साल 23 मार्च को भगत सिंह के बलिदान दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल हॉल में बिप्लोबी भारत गैलरी का उद्घाटन किया। गैलरी में भारत के महान क्रांतिकारियों के योगदान को दिखाया गया है।
मातृभाषा में शिक्षा पर जोर
नैशनल एजुकेशन पॉलिसी 2020 में मातृभाषा में पढ़ाई पर जोर दिया गया है। वैसे लंबे समय से शुरुआती पढ़ाई-लिखाई मातृ-भाषा में किए जाने पर जोर दिया जाता रहा है लेकिन अब सरकार इस पर खास जोर दे रही है।
डॉक्युमेंट्स के सेल्फ-अटेस्टेशन पर पीएम मोदी का जोर
पीएम मोदी ने 2014 में दस्तावेजों के स्व-प्रमाणन पर जोर दिया। पहले नौकरी, पढ़ाई के लिए दाखिला जैसे आवेदनों के साथ किसी राजपत्रित अधिकारी से प्रमाणित कराई हुईं सर्टिफिकेट की कॉपी को जमा करना होता था। अंग्रेजों के समय से चली आ रही इस परंपरा पर रोक से युवाओं को अनावश्यक तौर पर अधिकारियों के चक्कर लगाने से मुक्ति मिली।
भारतीय विमानों पर VT चिह्न से अभी नहीं मिल पाई मुक्ति
देश को आजाद हुए 75 साल हो गए लेकिन भारतीय विमानों पर अब भी गुलामी के प्रतीक हैं। दरअसल, देश से संचालित होने वाले सभी सरकारी और प्राइवेट विमानों पर कोड नंबर लिखा होता है जिसकी शुरुआत VT से होती है। यहां वीटी का अर्थ है वायसराय टेरिटरी। इसकी शुरुआत ब्रितानी हुकूमत के दौरान 1929 में हुई थी। आज भी इस चिह्न का क्या तुक है? क्या भारत का आसमान आज भी ब्रिटेन के वायसराय की टेरिटरी है? ऐसा हर्गिज नहीं है। कई बार इस चिह्न को बदलने की मांग हो चुकी है लेकिन ये बदला नहीं गया है। हो सकता है आगे चलकर गुलामी के इस प्रतीक से भी मुक्ति मिल जाए।
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