डेस्क। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) आने वाले दिनों में पीएलएसवी का उपयोग करके नियोजित आदित्य-एल1 उपग्रह के साथ सूर्य की गतिशीलता का अध्ययन करने के लिए अपने पहले सौर खोजपूर्ण मिशन की तैयारी कर रहा है। इसरो ने कहा कि सूर्य के अध्ययन का उद्देश्य विभिन्न अन्य आकाशगंगाओं के तारों के बारे में जानकारी प्राप्त करना है। इसरो ने कहा कि सूर्य निकटतम तारा है और इसलिए अन्य सितारों की तुलना में अधिक विवरण के लिए इसका अधिक अध्ययन किया जा सकता है।
सूरज की तरफ 15 लाख Km जाएगा आदित्य एल-1
आईयूसीएए के वैज्ञानिक एवं एसयूआईटी के मुख्य अन्वेषक प्रो. दुर्गेश त्रिपाठी ने बताया कि इसरो का सूर्य मिशन आदित्य एल-1 है जो धरती से सूरज की तरफ 15 लाख किलोमीटर तक जायेगा और सूरज का अध्ययन करेगा।
सूर्य एक बहुत ही गतिशील तारा है
इसरो ने कहा, ‘‘सूर्य का अध्ययन करके हम अपनी आकाशगंगा में तारों के बारे में बहुत कुछ जान सकते हैं साथ ही विभिन्न अन्य आकाशगंगाओं में सितारों के बारे में भी पता लगा सकते हैं। इसरो ने कहा, ‘‘सूर्य एक बहुत ही गतिशील तारा है हम जो देखते हैं उससे कहीं अधिक फैला हुआ है। यह कई विस्फोटक घटनाएं दिखाता है और सौर मंडल में भारी मात्रा में ऊर्जा छोड़ता है। यदि ऐसी विस्फोटक सौर घटनाएं पृथ्वी की ओर निर्देशित होती हैं, तो यह पृथ्वी के निकट अंतरिक्ष वातावरण में विभिन्न प्रकार की खलबली भी मचा सकता है।”
इसरो न कहा कि विभिन्न अंतरिक्ष यान और संचार प्रणालियां ऐसी गड़बड़ी पैदा कर सकता हैं और इसलिए पहले से ही सुधारात्मक उपाय करने के लिए ऐसी घटनाओं के घटित होने से पहले प्रारंभिक चेतावनी महत्वपूर्ण है। इनके अलावा, यदि कोई अंतरिक्ष यात्री सीधे सूर्य के तेज के संपर्क में आता है, तो उसका जीवन खतरे में पड़ जाएगा। सूर्य पर विभिन्न तापीय और चुंबकीय घटनाएं अत्यधिक प्रकृति की हैं। अंतरिक्ष से सूर्य का अध्ययन करने पर इसरो ने कहा कि सूर्य विभिन्न ऊर्जावान कणों और चुंबकीय क्षेत्र के साथ लगभग सभी तरंग दैर्ध्य में विकिरण/प्रकाश उत्सर्जित करता है।
उन्होंने कहा कि पृथ्वी का वायुमंडल और उसका चुंबकीय क्षेत्र एक सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करता है और कणों और क्षेत्रों सहित कई हानिकारक तरंग दैर्ध्य विकिरणों को रोकता है। क्योंकि विभिन्न विकिरण पृथ्वी की सतह तक नहीं पहुंच पाते हैं, इसलिए पृथ्वी पर वैज्ञानिकों के उपकरण ऐसे विकिरण का पता नहीं लगा पाएंगे और इन विकिरणों पर आधारित सौर अध्ययन नहीं किए जा सकेंगे।
इसरो ने कहा, ‘‘हालांकि, ऐसे अध्ययन पृथ्वी के वायुमंडल के बाहर यानी अंतरिक्ष से अवलोकन करके किए जा सकते हैं। इसी तरह, यह समझने के लिए कि सूर्य से सौर वायु के कण और चुंबकीय क्षेत्र अंतरग्रहीय अंतरिक्ष के माध्यम से कैसे विचरण करते हैं।”
इसरो ने कहा कि सूर्य लगातार विकिरण, गर्मी और कणों के निरंतर प्रवाह और चुंबकीय क्षेत्र से पृथ्वी को प्रभावित करता है। सूर्य से कणों के निरंतर प्रवाह को सौर पवन के रूप में जाना जाता है और ये अधिकतर उच्च ऊर्जा वाले प्रोटॉन से बने होते हैं। सौर हवा ज्ञात सौर मंडल के लगभग सभी स्थानों को भर देती है। सौर वायु के साथ-साथ सौर चुंबकीय क्षेत्र भी सौर मंडल को भर देता है।
इसरो ने कहा कि कि सौरमंडल हवा के साथ-साथ कोरोनल मास इजेक्शन (CME) जैसी अन्य विस्फोटक/विस्फोट सौर घटनाएं अंतरिक्ष की प्रकृति को प्रभावित करती हैं। अंतरिक्ष मौसम को समझने पर इसरो ने कहा कि यह पृथ्वी और अन्य ग्रहों के आसपास अंतरिक्ष में बदलती पर्यावरणीय स्थितियों को संदर्भित करता है।
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